________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie // 177 // संस्कार-धमादध्यात् // पुनरग्ने सुश्रवइत्यादिपंचभिमरिंधनंप्रक्षिप्य॥ तूष्णींपाणीप्रतप्या भास्कर. तनूपाअग्नेत्यादिमंत्रैःप्रतिमंत्रमुखविमार्जनं // पुनःअंगानिचमइत्यादियशोबलमि / त्यंतमंत्रैःप्रतिमंत्रप्रत्यंगालंभनंकार्य // ततस्यायुषमितिप्रतिमंत्रणभस्मललाटेग्री है। वायांदक्षिणेठसेहृदिचसंधार्य // ततोगोत्रनामपूर्वकंवैश्वानरादीनामभिवादनं // नेनसायमग्निपरिचरेणअग्निनारायणःप्रीयतां // एवंप्रातःस्नानसंध्योपासनोत्तरंआ चमनादिदेशकालकीर्तनोत्तरप्रातरग्निपरिसमूह समिदाधानादिकंचकरिष्येइत्यूहे / हनइंधनप्रक्षेपादिअभिवादनांतंसर्वकर्मकुर्यादिति // उपनयनाग्नौनष्टेपुनरुत्पादनवि / धिः // रेणुकारिकायां // व्रताग्निनाशेव्रतिनात्रीन्कृच्छ्रांश्चव्रतंचरेत् // प्राग्वदग्निप्र. तिष्ठाप्यकटिसूत्रादिकंपुनः // स्टशन्मंत्रान्पठेदनावाज्येनाहुतिपूर्ववत्॥ नगायत्र्यु / // 177 // हापदेशंचकृत्वाग्निपरिशुश्रुषांइति // // अथयमलजातपुत्रयोरुपनयनेनिर्णयः॥ // RI / For Private and Personal Use Only