________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit णछेदनंगोमयपिंडेप्रासनं // पुनरुत्तरगोदानेएवमेवापरंउक्तप्रकारेणवारद्वयंतू भास्कर. नव्यं // उंदनं // विनयनं // त्रिकुशतरुणांतर्धानं // संलग्नीकरणं॥ छेदनं // पेंडेप्रासनं // ततस्त्रिःक्षुरेणशिरःप्रदक्षिणंपरिहरति // ॐ यत्क्षुरेणमज्जयि / सावप्तावावपतिकेशाञ्छिन्धिशिरोमास्यायुःप्रमोषीः // 1 // सकृन्मंत्रण गीशिरसःसमंतात्क्षुरभ्रामणं // ततस्ताभिरद्भिःशिरःसमुंद्यनापितायक्षुरंप्रय // ॐ अक्षण्वंपरिवपइतिमंत्रेण॥सचनापितउदङ्मुखस्थितस्यकुमारस्यप्रा, नप्राङ्मुखस्थितस्यउदक्संस्थंशिरोवपेत्॥यथामंगलंकेशशेषकरणमित्यस्या रः॥ // कुलव्यवस्थयाशिखास्थापनं // केचित्पंचशिखाः // केचिदेकशिखाः॥ दियथाप्रसिद्धिस्तस्यतथाशिखास्थापनं // यथा // केशशेषततःकुर्याद्यस्मिन्गो // 14 // यथोचित॥कुर्वन्त्यन्यशिखामात्रंमंगलार्थमिहक्कचित्॥कांबोजानांवसिष्ठानांदक्षि / AGAGAGAGANA For Pricate and Personal Use Only