________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAलक RECORORSCORPeos000 लादिकं // यावत्प्रपूर्यतेसंख्यालक्षवाकोटिरेववा // वाशब्देनअयुतमपिगृण्हीया त् // तिला कृष्णाघृताभ्यक्ता:किंचिद्यवसमन्विताः होमेव्याहृतिभिश्चैवसर्वस्तत्रवि / धीयतेइतिशांतिरत्ने // संग्रहे // कोटावधिप्रत्यधेश्वशतमष्टाधिकाहुतिः // विना यकादिदिक्पालान्ताष्टाविंशतिसंख्यया // 1 // लक्षेअष्टाविंशतिश्चअधिप्रत्यधिके षुच // विनायकादिदिक्पालान्ताष्टाष्टसंख्ययाहुतिः // 2 // अयुतेष्टाष्टसंख्याकैर धिप्रत्यधिकेषुच॥विनायकादिदिक्पालांतानाहुत्वाचतुश्चतुः॥३॥ केवलेअधिप्रत्य है। हाधिहुत्वाचैवचतुश्चतुः // विनायकादिदिक्पालाहेदेसंख्याहुतीहुनेदिति // 4 // शौन कः॥अंतेपूर्णाहुतिहुखासमुद्रार्मिसूक्ततः॥ सततामाज्यधारांतांपूर्णाहुतिमथाचरेत्॥ मात्स्येग्निपुराणेच // मूर्धानंदिवमंत्रेणावशेषघृतधारया // दद्यादुत्थायपूर्णावे / नोपविश्यकदाचन // इतिकातीयानांचावश्यंशांतिमयूखे।।शुक्रज्योत्यनुवाकनघृते / / For Private and Personal Use Only