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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। 99 फल पूजन। कितने लोगों का विचार है कि वादाम, लवंग, इलायची, छुहारे, पिस्ता आदि निर्जीव सूखे पदार्थ जब अनायासेन उपलब्ध होते हैं फिर विशेष श्रम से संग्रह किये हुवे हरित फलों के चढ़ाने से विशेष लाभ क्या है ? यह बात समझ में नहीं आती। जैनियों का मुख्याद्देश जिस कार्य के करने से लाभ अधिक तथा हानि थोड़ी हो उसे करने का है । हरित फलो के चढ़ाने से जितनी हिंसा होती है उतना पुण्य होगा यह बात परिणामो के आधीन है । कदाचित् कहो कि हमारे परिणाम हरित फलों के चढ़ाने से ही पवित्र रहेंगे ? परन्तु इसके पहले सामग्री की भी शुद्धता होनी चाहिये । कोई कहे कि हमारे परिणाम खोटे कामों के करने से अच्छे रहते हैं परन्तु उसे नीतिज्ञ पुरुष कब स्वीकार करने के हैं। तथा धर्म शास्त्री से भी यह बात विरुद्ध है । इत्यादि। हमारा यह कहना नहीं है कि सूखे फल न चढाये जाँय। परन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं कहा जा सकता कि इसके साथ ही आचार्यों की आज्ञा का उल्लङ्घन कर दिया जाय । हरित फलों के निषेध के केवल दो कारण बताये गये हैं परन्तु बुद्धिमानों की नजर में वे उपयोगी नहीं कहे जा सकते। पहला कारण उनके सचित्त होने के विषय में है। परन्तु यह For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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