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संशयतिमिरप्रदीप |
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जिस तरह नैवेद्य की जगहँ नारियल के खण्ड काम में लाये जाते हैं वही प्रकार दीपक का भी है । परन्तु विशेष यह है कि दीपक की जगह उन्हें केशर के मनोहर रंग से रंग लिये जाते
। चाहे और न कुछ होतो न सही परन्तु पूजक पुरुष की इतनी इच्छा तो अवश्य पूर्ण हो जाती है कि दीपक की तरह उनका भी रंग पीला हो जाता है। अच्छा होता यदि इसी तरह आठों द्रव्यों की जगहूँ भी किसी एक द्रव्य से ही काम ले लिया जाता । और इससे भी कितना अच्छा होता यदि इसी पवित्र संकल्पित दीपक से सर्वगृह कार्य निकाल कर तैलादिकों के अपवित्र दीपकों का विदेशी वस्तुओं के समान वहिष्कार कर दिया जाता। खेद ! बिचार बुद्धि हमारा आश्रय छोड़ चुकी ? आचार्यों के परिश्रम का विचार नहीं, शास्त्रों की आशा का विचार नहीं । जो कुछ किया वह सब अच्छा है । सच पूछा तो इसी भ्रमात्मक श्रद्धान ने हमें रसातल में पहुंचाया । इसी ने हमारे पवित्र भाग्य पर पानी फेरा । अस्तु ।
जब किसी महाशय से अपने भ्रमात्मक ज्ञान की निवृत्ति केलिये पूछा जाता है कि इस तरह दीपक के संकल्प करने की विधि किस शास्त्र में मिलेगी तो कुछ देर तक तो उनके मुँह की ओर तरसना पड़ता है। यदि किसी तरह दया भी हुई तो यह युक्ति आकर उपस्थित होती है कि जब साक्षाजिनभगवान् का संकल्प पाषाणादिकों में किया जाता है तो, दीपक तथा पुष्पों के संकल्प में क्या हानि है ? इस अकाट्य युक्ति का भी जब " जिन भगवान् का प्रतिमाओं में संकल्प नाना तरह के मंत्र से होता है तथा शास्त्रानुसार है। इस आशा के न मानने से धर्म कर्म का नाश होना सम्भव है । दूसरे जीवों को
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