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संशयतिमिरप्रदीप ।
पक्षपात नहीं किया गया है यह असंगत है कि बहुना यदि निष्पक्ष बुद्धि होती तो इसके बनाने के लिये इतना श्रम नहीं उठाना पड़ता इसालये इस विषय में पक्षपात है या नहीं इसके लिये पुस्तक ही निदर्शन है ?
यह बात विचाराधीन है कि पक्षपात किसे कहते हैं मेरी समझ के अनुसार यह पक्षपात नहीं कहा जा सकता। पक्षपात उसे कहते हैं कि जो बात सरासर झूठी है और उसके ही पुष्ट करने का प्रयत्न किया जाय तो बेशक उसे पक्षपात कहना चाहिये। सो तो हमने नहीं किया है। यही कारण है कि इस ग्रन्थ में जितने विषय लिखे हैं उन सब को प्राचीन महर्षियों के अनुसार लिखने का प्रयत्न किया है। अपने मनोऽनुकूल एक अक्षर भी नहीं लिखा है फिर भी इसे पक्षपात बताना यह पक्षपात नहीं तो क्या है? फिर तो यो कहना चाहिये कि ग्रन्थकारों ने जो जगह २ अन्यमतादिकों का निरास किया है उन सब का कथन पक्षपात से भरा हुआ है। इस तरह के श्रद्धान को सिवाय भ्रम के और क्या कहा जा सकता है । और न ऐसे श्रद्धान को बड़े लोग अच्छा कहेंगे । वास्तव में पक्षपात उसे कहना चाहिये जो शास्त्रों के विरुद्ध, प्राचीन प्रवृत्ति के विरुद्ध हो
और उसे ही हेयोपादेय के विचार रहित पुष्ट करने का प्रयत्न किया जाय । शास्त्रों के कथनानुसार विषयों के मानने से पक्षपात नहीं कहा जा सकता इसी से कहते हैं कि
युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः । इसकी प्रथमा वृत्ति में दूसरे भाग के प्रकाशित करने का विचार किया था परन्तु कितने विशेष कारणों से उसके लायक सामान तयार नहीं कर सके इसलिये उस विचार को स्थिर
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