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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .................... . ............ .. - - संशयतिमिरप्रदीप। ४१ तिन में पकसि भई अति भारी, __सो तो सब जानत नर नारी। ताही मांझि वहसि अब करिक, तेरहपंथ चलायो अरिकै। तब कितेक बोले बुधिवन्त, किंह नगरी उपज्यो यह पंथ । किंह सम्बत कारण कहु कौन, सो समझाय कहो तजि मौन । प्रथम चल्यो मत आगरे श्रावक मिले किर्तक । सोलह से तौयासिये गही कितुक मिलि टेक ॥ काह पण्डित पैं सुनें किते अध्यातम ग्रन्थ । श्रावक किरिया छोड़ि के चलन लगे मुनि पन्थ ॥ फिर कामा में चलि पस्यौ ताही के अनुसारि। रोति सनातन छांड़ि के नई गही अघकारि॥ केसर जिनपद चरचिवौ गुरु नमिवो जगसार । प्रथम तजी ए दोय विधि मन मह ठानि असार ॥ ताही के अनुसार तें फैल्यो मत विपरीत। सो सांची करि मांनियो झठ न मानहु मौत ॥ इस कथा के अनुसार यह ठोक २ मालम पड़ता है कि जिन लोगों का मत गन्ध लेपनादिक विषयों के निषेध करने For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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