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॥ श्रीपरमात्मने नमः ||
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प्रस्तावना
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दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में तेरापंथ और वीसपथ की कल्पना करना योग्य नहीं है। काल के परिवर्तन से अथवा यां कहो कि ज्ञान की मन्दता से और अज्ञान की दिनों दिन वृद्धि होने से ये कल्पनायें चल पड़ी हैं। इनका किसी शास्त्र में नाम निशान तक देखने में नहीं आता। दिगम्बर सम्प्रदाय में ये कल्पनायें कैसे और कब चली इसका मैं ठीक २ निर्णय नहीं कर सकता | परन्तु वर्तमान कालिक प्रवृत्ति और परस्पर की ईर्षा बुद्धि से इतना कह भी सकता हूँ कि ये कल्पनायें अभिमान और दुराग्रह के अधिक जोर होने से चली हैं। अस्तु । आज इसी विषय की ठीक २ परीक्षा करना है कि सत्य बात क्या है ? परन्तु इसके पहले उस सामग्री की भी आवश्यक्ता पड़ेगी जिससे यथार्थ बात की परीक्षा की जा सके। यह मामला धर्म का है और धर्म तीर्थकरों तथा उनकी बाणी के प्रचारक महर्षियों के आधार है। इसलिये इस विषम विषय की परीक्षा करने में हम भी उन्हीं का आश्रय स्वीकार करेंगे। यद्यपि दोनों कल्पनाओं को मैं मिथ्या समझता हूँ परन्तु इस का अर्थ यह नहीं समझना चाहिये कि जो सम्प्रदाय किसी प्रकार शास्त्र के मार्ग पर चलती हो उसे भी मैं ठीक नसमझं किन्तु वह सम्प्रदाय उससे अवश्य अच्छी है जो शास्त्रों से सर्वथा प्रतिकूल है ।
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