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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। उत्तर-क्या इसे ही विरोध करते है ? अस्तु । परन्तु यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि केवली भगवान और प्रतिमाओं की पूजनादि बिधियों में प्रायः अन्तर देखा जाता है। इसलिये जिस अभिप्राय से वसुनन्दि खामि को कहना है वह बहुत ठीक है । उस में किसी तरह का विरोध नहीं कहा जा सकता । इतने पर भी यदि यह बात न मानी जाय तो, केवली भगवान का अभिषेक नहीं होता फिर प्रतिमाओं का भी नहीं होना चाहिये। केवली भगवान् अन्तरीक्ष रहते हैं प्रतिमाओं को भी वैसे हो रहना चाहिये । केवलोजिन परस्पर में कभी नहीं मिलते हैं प्रतिमाओं को भी एक जिनालय में एकही को रहना चाहिये । इत्यादि । प्रश्न-खैर! मानलिया जाय कि केवली भगवान् की और प्रति माओं को पूजनादि विधियों में अन्तर है। परन्तु अक त्रिम प्रतिमाओं में तो भेद नहीं रहता? फिर इनके दर्शन पूजनादि करने वालों को जान हीन कहना पडेगा? उत्तर-अकृत्रिम तथा कृत्रिम प्रतिमाओं में भी प्रतिष्ठादि क्रिया ओं का भेद रहता है । एक की प्रतिष्ठादि होतो है एक की नहीं होती यह भो सामान्य भेद नहीं है। यह भी दूर रहे, परन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है कि अकृत्रिम प्रतिमाओं पर गन्ध नहीं लगता है। शास्त्रों में तो गन्ध लगाने का प्रमाण मिलता है फिर इसे अप्रमाण नहीं कह सकते। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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