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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। पद्म पुराण के अडा पूर्वक पठन पाठन का दिनरात प्रवमर मिलता है उसो के उस प्रकरण की उपेक्षा क्यों ! जिस जगह पञ्चामृताभिषेक तथागन्ध लेपनादि को का वर्णन है। तुम्हारे कथनानुसार कदाचित् मान भी लियाजाय कि यह काम भट्टारकों का ही किया हुपा है तो फिर पंडित पाशाधरादि विद्वानों के रवेहुवे शास्त्रों में इससम्बन्ध के लेख नहीं होने चाहिये । क्योंकि भट्टारकों को उत्पति के पहले जैन मत में किसी प्रकार का पाषंड नहीं था। इसे उमय सम्पदाय के सज्जनों को निर्विवाद स्वीकार करना पड़ेगा। भट्टारकों की उत्पत्ति विक्रमाब्द १३१६ में हुई है और प्राशाधर १२०० के अनुमान में वे हैं । इस लिखने में हमें यह बात सिद्ध करना है कि भधारकों से पहले के महर्षियों तथा विद्वानों के प्रन्यों में पञ्चामृता भिषेकादि का वर्णन है। इसलिये पञ्चामृताभिषेक अनुचित नहीं कहा जासकता। प्रश्न--पञ्चामृताभिषेक काष्टासंघ से चला है। मूल संघ में तो केवल जलाभिषेक है। क्योंकि-आदि पुराण में लिखा है: देवन्द्राः पूजयन्त्युच्चैः चोरोदाभोभिषेचनैः । पर्थात् -देवता लोग बोर समुद्र के जल से जिन भगवान का पभिषेक करते हैं। उत्तर-यदि पञ्चामृताभिषेक काशसंघ ही प्रचलित हमा होता तो उसका विधान मूल संध के ग्रन्यों में देखने में नहीं पाता । परन्तु इसे ती उमास्वामि, वामदेव, For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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