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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयति मिरप्रदीप। जो पुरुष सर्वौषधि से जिन भगवान के शरीर में लेपन करता है उसके लिये ग्रन्थकार कहते हैं कि वह जन्मजन्म में सम्पूर्ण रोगों से रहित शरीर को धारण करता है। भगवान्कुन्दकुन्दाचार्य कृत षट्पाहूड़ ग्रंथ की श्रुतसागरी वृत्ति में लिखा है कि तथाच कारात्याषाणघटितस्यापि जिनबिम्बस्य पञ्चामृतः, सपनं, अष्टविधैः पूजाट्रव्यश्व पूजनं कुरुत यूयं, वन्दनाभक्तिय कुरुत । यदि तथा भूतं जिनबिम्बं न मानयिष्यथ गृहस्था अपि सन्तस्तदा कुम्भोपाकादिनरकादौ पतिष्यथ यूयमिति । पर्थात् यहां पर वैयाहत्य का प्रकरण है। इसमें चकार से पाषाण को जिन प्रतिमा का पञ्चामृत करके अभिषेक और अष्टप्रकार पूजन द्रव्यों से यूजन करो । तथा वन्दना भत्रि भौ करो। जो इस प्रकार की जिन प्रतिमाओं को स्वीकार नहीं करोगे तो रहस्थ होते हुये भी कुम्भीपाकादि नरकों में पड़ोगे। श्री धर्म संग्रह में: गर्भादिपञ्चकल्याणमहता यद्दिनेऽभवत् तथा नन्दिश्वरे रत्नत्रयपर्वणि चार्चताम् । सपनं क्रियते नाना रसैरिक्षुवृतादिभिः तत्र गीतादिमांगल्यं कालपूजा भवेदियम् । अर्थात् - जिस दिन अहन्त भगवान् के गर्भादि पञ्चकख्याण हुये हैं उस दिन नन्दीश्वर पर्व के दिन तथा रखत्रयादि पर्वी में प्रचुरस और घृतादिकों से अभिषेक तथा संगीत जागरणादि शुभ कार्यों के करने को काल पूजन करते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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