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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवेदन. पाठक महोदय ! सविनय आप लोगों की सेवा में यह छोटा सा ग्रन्थ समर्पित करता हूं। मैंने जहां तक हो सका प्रत्येक विषय को अच्छी तरह विचार कर लिखा है फिर भी इस बात के कहने का अधिकार नहीं रखता कि इसमें किसी तरह का दोष न होगा। क्योंकि मनुष्यों से भूल होना यह एक साधारण बात है फिर तो मैं एक द्राविंशतिवर्षीय छोटा बालक हूं । परन्तु साथ ही यह भी कह देना हानिकारक नहीं समझता कि कदाचित् आपलोग मुझे बालक समझ कर "बालानां भाषितेषु का श्रद्धा" ऐसा विचार कर इससे उपेक्षा करने लग जावें इसलिये कहना पड़ता है "ननु वक्तृविशेषनिस्पृहा गुणगृह्या बचने विपश्चितः" अर्थात् गुणों के गृहण करनेवाले वुद्धिमान् लोग वक्त विशेष (यह बालक है यह वृद्ध है ) इत्यादि में आस्था रहित होते हैं । इसी नीति का सभी को अनुकरण करना चाहिये । मैंने इस ग्रन्थ में कोई बात शास्त्रविरुद्ध नहीं लिखी है किन्तु जैसा प्राचीन मुनियों का कथन है उसे ही एकत्र संग्रह किया है। इसलिये सर्वथा स्वीकार करने के योग्य है। __ यह मेरा पहला प्रयास है इसलिये मुझे हास्यास्पद न बना कर मेरे छोटे दिल के बढ़ाने का उपाय करेंगे। यदि अनवधानता से कुछ परम्परा से विरुद्ध लिखा गया हो तो क्षमा करेंगे। और आगामी सुधारने की आज्ञा देकर अनुग्रहाई बनावेंगे। सबका दास. वही मैं एक. For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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