________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संशयतिमिरप्रदीप ।
मैं जहां तक विचार करता हूं तो मेरे ध्यान में जैन जाति के अवनति की कारण प्रकृत विषय की उपेक्षा ही हुई है। इस बात को आबाल वृद्ध कहेंगे कि कोई काम हो वह समयानु कूल होना चाहिये असमय में किये हुवे काम से जितनी अभिलषित अर्थ की इच्छा की जाती है वह उस प्रकार न होकर कहीं उससे अधिक हानि की कारण भूत पड़जाती है यही कारण है कि आज जैन समाज भी इसी दशा से आर्त दिखाई पड़ता है । यदि मुनि अवस्था में रहकर गृहस्थ धर्म का आचरण किया जाय तो उसे कोई ठीक नहीं कहेगा उसी तरह गृहस्थ अवस्था में रहकर मुनियों केसा आचरण करे तो वह निन्दा का ही पात्र कहा जा सकेगा । इसीलिये राजर्षि शुम चन्द्राचार्य ने गृहस्थों को कई कारणों का अमाव रहने में ध्यानादिको की सिद्धिका निषेध किया है निषेध ही नहीं किन्तु गृहस्थों को अनधिकारी भी बतलाये हैं वह कथन इस तरह है
न प्रमादजयः कर्तु धीधनैरपि पार्यते । महाव्यसनसंकीर्णे गृहवासेऽतिनिन्दिते ॥ शक्यते न वशीकत गृहिभिश्चपलं मनः । अतश्चित्तं प्रशान्त्यर्थं सद्भिस्त्यक्ता गृहस्थितिः ॥ प्रतिक्षणं द्वन्द्वशतात्त चेतसा नृणां दुराशागृहपीडितात्मनाम् । नितम्बिनीलोचनचौर संकटे गृहाश्रमे नश्यति स्वार मनो हितम् ॥
For Private And Personal Use Only