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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। आमला, जास्बू, विल्व इत्यादि अनेक प्रकार के पवित्र सुगन्धित, और मिष्ट, पके हुवे फलो से जिनभगवान् के चरण कमलों के आगे रचना करनी चाहिये। फल पूजन के सम्बन्ध में वसुनन्दि स्वामी पूजन के फल को कहते हुवे कहते हैं किः जायइ फलेहिं संपत्तपरमणिव्वाणसोक्खफलो । अर्थात्-जिनभगवान् की फलों से पूजन करने वाले मोक्ष के सुख को प्राप्त होते हैं। इसी तरह जितने पुस्तक हैं उन सब में फल पूजन के सम्बन्ध में लिखा हुआ है । उसेही मानना चाहिये । महर्षियों की आशा का उल्लंघन करना अनुचित है। पुष्प कल्पना। इस विषय में भगवान् उमास्वामी महाराज का कहनाहैकिःपद्मचम्पकजात्यादिस्रग्भिः सम्पूजयज्जिनान् । पुष्पाभावे प्रकुर्वीत पीतामतभवैः समः ॥ अर्थात्-कमल, चम्पक, केवड़ा, मालती बकुल, कदम्ब, अशोक, चमेली, गुलाष, मल्लिका, कचनार, मचकुन्द, किंकर, पारिजात आदि पुष्पों से जिनभगवान की पूजन करनी चाहिये। यदि कहीं पर उक्त फूलों का योग न मिले तो, चावला को केशर के रंग में रंग कर पुष्पों की जगहें काम में लाने चाहिये। यह तो महर्षियों की आज्ञा है। परन्तु इस समय तो प्रवृति For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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