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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० सम्यक्त्व-कौमुदी उपदेश सुनकर राजा और भी पका श्रावक हो गया । ग्रन्थकार कहते हैं कि हजार मिथ्यादृष्टियोंसे एक जैनी अच्छा है, हजार जैनियोंसे एक श्रावक अच्छा है, हजार श्रावकोंसे एक अणुव्रती अच्छा है, हजार अणुव्रतियोंसे एक महाव्रती अच्छा है, हजार महाव्रतियोंसे एक जैनशास्त्रका ज्ञाता अच्छा है, हजार जैनशास्त्रोंके ज्ञाताओंसे एक तत्त्ववेत्ता अच्छा है, और हजार तत्त्ववेत्ताओंसे एक दयालु अच्छा है, क्योंकि दयालुके समान अच्छा न कोई हुआ और न होगा । परन्तु जितेन्द्रिय, कृतज्ञ, विनयी, कषायरहित और शान्तचित्त, सम्यग्दृष्टि जीव इन सबसे अच्छा है । इस प्रकार श्रावक होकर सोमप्रभ राजाने कुछ समय गृहस्थाश्रममें ही बिताया । बादमें वह उग्र तप करके अनन्त सुखके धाम मोक्षको चला गया। सुवर्णयज्ञकी सब कथा सुनकर सोमशर्माने मुनिसे कहामुनिराज, अब तो मैं आपके चरणोंकी शरणमें हूँ। मुझे जिनधर्मका प्रसाद दीजिए-मुझे सच्चा जैनी बनाइए । यह सुनकर मुनिने उसे दर्शनपूर्वक श्रावकके व्रत दिये । व्रतोंको स्वीकार कर वह बोला-मुनिराज, आजसे मैं कभी लोहेका हथियार न चलाऊँगा । यह नियम लेकर, सोमशर्मा अबसे काठकी तलवार बनवाकर और उसे एक सुन्दर म्यानमें रखकर राज-दरबारमें जाने-आने लगा। इसी तरह उसे रहते बहुत समय बीत गया। एक दिन किसी दुष्टने राजासे For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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