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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन्दनश्रीकी कथा । ब्राह्मणकी लड़की है । उसने मरते समय इसे गुणपाल सेठके हवाले किया है । तबहीसे गुणपाल इसे पुत्रीके समान पालता है । रुद्रदत्त तब कहने लगा-इसके साथ तो मैं विवाह करूँगा । उन लोगोंने कहा-तू बड़ा ही मूर्ख है जो बे-सिर पैरकी बातें कह रहा है। __बड़े बड़े दीक्षित और चतुर्वेदी ब्राह्मण तो इसके लिएमँगनी कर-करके लौट गये, उनके साथ तो सेठने सोमाका विवाह किया ही नहीं और तुझसे जुआरी-व्यसनीके साथ वह सोमाको ब्याह देगा? असंभव है । गुणपाल जैनीको छोड़कर सोमाका विवाह और किसीसे न करेगा । उन लोगोंकी बातें सुनकर रुद्रदत्तने बड़े घमंडसे कहा-मेरी बुद्धिका चमत्कार तो जरा आप लोग देखते रहिए कि मैं क्या क्या करता हूँ। आप विश्वास करें कि मैं ही इसके साथ विवाह करूँगा । ऐसी प्रतिज्ञा करके रुद्रदत्त परदेश चला गया। वहाँ पर कपटसे किसी मुनिके पास वह ब्रह्मचारी बन गया और ब्रह्मचारीके सब क्रिया-कर्म सीख कर उसी नगरमें गुणपाल सेठके जिनालयमें आकर ठहर गया । इस नये ब्रह्मचारीका आगमन सुनकर गुणपाल सेठ मंदिरमें आया और इच्छाकार करके उसके पास बैठ गया । ब्रह्मचारीने " दर्शनविशुद्धिरस्तु" ऐसा कह कर आशीर्वाद दिया । इसके बाद सेठने कहा-आप किनके शिष्य हैं ? यहाँ आपका भागमन कैसे हुआ ? ब्रह्मचारी ने कहा-आठ आठ उपवास For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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