________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मित्र श्रीकी कथा |
६७
ने कहा- संसारके सब पदार्थोंमें भय है, एक वैराग्य ही अभय है । तुम लोगोंने दीक्षा लेकर बड़ा ही अच्छा किया । देखो, भोगों में रोगका भय है, सुखमें उसके विनाश होनेका भय हैं, धन रहने पर राजा और चोरका भय है, अगर मनुष्य नौकर होकर रहे तो उसे मालिकका डर रहता है, विजय हो जाने पर भी शत्रुका भय है, कुलमें दुष्टा-व्यभिचारिणी स्त्रीके होनेका भय है और किसी तरहसे मान-मर्यादा बढ़ जाय तो उसके घटने का डर है, गुणोंमें दुष्टोंका भय और देहमें यमराजका भय है । मतलब यह कि भय सबमें है, पर एक वैराग्य ही ऐसा है, जो भयसे सर्वथा परे है।
इस कथाको सुनकर अद्दासकी स्त्री मित्रश्रीने कहानाथ, मैंने यह सब प्रत्यक्ष देखा है । इसीसे मुझे दृढ़ सम्यक्त्वकी प्राप्ति हुई | अदासने कहा- प्रिये तूने जो देखा है, उस पर मैं विश्वास करता हूँ, उसको चाहता हूँ और उसमें रुचि करता हूँ | सेठकी और और स्त्रियोंने भी ऐसा ही कहा । पर सेटकी छोटी स्त्री कुन्दलताने कहा - यह सब झूठ है । मैं इस पर श्रद्धान नहीं कर सकती । राजाने, मंत्रीने और बड़के वृक्ष पर छुपे हुए चोरने कुंदलताकी बात सुनी । राजाने मनमें विचारा - यह कैसी पापिनी है जो सत्यको भी असत्य कह रही है । सबेरे ही इसे गधे पर चढ़ाकर निकाल शहर बाहर करूँगा । चोरने अपने मनमें विचारादुर्जन गुणोंको छोड़कर दोषोंको ही ग्रहण करता है । नीति
For Private And Personal Use Only