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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी जो दुष्टा हो, उसीको तू मार डाल । यह कह कर उसने उसे भेज दिया। योगीकी बात सुनकर वैताली-विद्या वहाँसे चली और अपने घरमें अकेली सोती हुई कनकधीको मारकर और लोहू-लुहान तलवार लिये मरघटमें योगीके पास आई । योगीने उसे विदा किया। विद्या अपने स्थानको चली गई और योगी भी अपने स्थानको चला गया । __ सबेरा हुआ। बन्धुश्री प्रसन्न होती हुई अपनी लड़कीके घर पर आई और खाट पर लड़कीका कटा सिर देखकर चिल्लाती हुई राजाके पास दौड़ी जाकर उसने राजासे कहा-महाराज, जिनदत्ताने सपत्नीक द्वेषसे मेरी लड़कीको मारडाला। इस बात को सुनकर राजाको बड़ा क्रोध आया। क्रोधमें आकर उसने वृषभदास सेठ और जिनदत्ताको पकड़नेके लिए तथा घरकी कोई वस्तु इधर उधर न होने पावे, इस बातकी रखवाली के लिए सिपाहियोंको भेजा। वे उन दोनोंको पकड़नेके लिए आये तो, लेकिन नगरदेवताने उनको जहाँका तहाँ कील दिया। यह बात सेठ और जिनदत्ताने सुनी तो उन दोनोंने विचारा-पूर्व जन्ममें जिसने जो कर्म उपार्जन किये हैं वे बिना भागे मेटे नहीं जा सकते । जिस स्थानमें, जिस दिन, जिस समय, जिस मुहूर्तमें जो होना होता है वह हो ही कर रहता है । इसमें फेर नहीं पड़ता । ऐसा विचार कर दोनोंने निश्चय किया कि जब तक यह उपसर्ग दूर न होगा तबतक हम जिनालयहीमें रहेंगे। For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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