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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयोधन राजाकी कथा। विवेकवानोंके साथ संगति ही है, वह अगर कुराहमें चले तो उसमें उसका अपराध भी क्या ? यमदंडने अपनी कथा यहीं पर समाप्त की । राजाने अब भी कथाका मतलब नहीं समझा। यमदंड अपने घर चला गया। इस तरह छठा दिन भी बीता । __ सातवें दिन यमदंड राजसभामें गया। राजाने पूछा-चोर मिला ? वह बोला-नहीं । राजाने कहा-तब इतनी देर कहाँ लगी ? यमदंड बोला-महाराज, एक जगह चबूतरे पर एक माली कथा कह रहा था, मैं उसे सुनने लगा। इससे देरी हो गई। राजाने वह कथा सुनानेको यमदंडसे कहा, यमदंडने कहा-अच्छा महाराज, मुनिए। ___ अवन्ति देशमें उज्जयिनी नगरी है । उसमें सुभद्र नामका एक व्यापारी था। उसकी दो स्त्रियाँ थीं । एक दिन सुभद्र व्यापारके लिए बाहर जानेकी इच्छासे अपनी दोनों स्त्रियोंको अपनी माताको सौंपकर आप शुभ मुहूर्तमें अपने साथियोंके साथ विदेशके लिए रवाना हुआ और नगरके बाहर जाकर ठहरा । सुभद्रकी मा व्यभिचारिणी थी। सो वह लड़केको घर बाहर होते ही अपनी फुलवारीमें यारको लेकर जा सोई। रातको किसी कामके लिए सुभद्र घर पर आया और दरबाजे बाहरसे उसने पुकारा-मा, किंवाड़ खोल । माने लड़केकी आवाज सुनकर किंवाड़ खोल दिये । पर वे दोनों मा और यार डरके मारे भागे और घरके एक कोनेमें छुप गये। जब लड़का भीतर आया तो उसने अपनी माके पहरनेका For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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