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सम्यक्त्व-कौमुदी
इसी बातको फिर एक वार राजासे कहलवा कर महाजन लोग अपने अपने घर चले गये। इधर यमदंडने शहरके लोगों और राजकुमारोंसे मिलकर कहा-अब मै क्या करूँ ? मेरे लिए यह बड़ी ही बुरी दशा उपस्थित है। उत्तरमें उन्होंने कहा-कोतवाल साहब, आप डरिए मत । क्योंकि हमें विश्वास है, आपके रक्षा करते यहाँ चोरी कभी हो ही नहीं सकती । यह चोरी तो राजाके भेदहीसे हुई है। आपमें जो चोर ठहरेगा, हम लोग उसका निग्रह करेंगे-उसको दंड देंगे। यमदंड बोला, ठीक है।
इसके बाद यमदंड धूर्ततासे चोरकी तलाशमें रहने लगा। पहले दिन यमदंड राजसभामें गया । राजाको नमस्कार कर वह बैठ गया। राजाने पूछा-चोर मिला ? यमदंड बोला-महाराज, मैने बहुत ढूँढा पर चोर नहीं मिला । राजाने फिर पूछा-तब तूने इतना समय कहाँ गमाया ? यमदंड बोला-महाराज, एक जगह एक कथा कहनेवाला कथा कह रहा था । मैं उसे सुनने लग गया । इसलिए मुझे इतनी देर लग गई । राजा बोला-अरे यमदंड, तू अपनी मृत्युको क्यों भूल रहा है ? अच्छा तू अपनी उस आश्चर्य भरी कथाको तो कह । यमदंड बोला-महाराज, कहता हूँ। आप सावधान होकर सुनिए।
"चिर समय तक जो लता वृक्ष पर निरुपद्रव बढ़ती रहीवृक्षने उसे आश्रय दिया, और फिर वही लता वृक्ष द्वारा जड़ मूलसे उखाड़ कर फैंकदी जाये तो इसे आश्रयसे भय प्राप्त हुआ कहना चाहिए । अर्थात् रक्षक ही भक्षक बन गया।"
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