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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~४४० उपस्थित है। इसका खूब ध्यान रखें। इसके बाद जब राजा पयान करने लगा उस समय यमदंड कोतवालको बुला कर उससे राजाने कहा-कोतवाल महाशय, हम शत्रुका पीछा करने जाते हैं, तुम प्रजाकी अच्छी तरह रक्षा करना । यमदंड बोला-महाराज, आपने मेरे ऊपर बड़ा अनुग्रह किया। मैं आपकी आज्ञाको अच्छी तरह पालन करूँगा । राजाने यमदंडको और भी कई काम सौंपकर दिग्विजयके लिए पयान किया। यमदंडने उसी दिनसे ऐसा शासन किया कि उससे सब प्रजाके लोग बड़े ही प्रसन्न हुए। यहाँतक कि यमदंडने अपने सुशासनसे राजकुमारोंको भी वशमें कर लिया । उधर सुयोधन थोड़े ही दिनोंमें शत्रुको जीत कर और उसकी सब धन-दौलत छीन कर अपने शहरको लौट आया । राजाको आया जान शहरके महाजन लोग उसके सामने अगवानी करनेको आये । राजाने उन सबका सम्मान कर पूछा कि आप लोग सुखसे तो रहे ? महाजनोंने उत्तर दिया-महाराज, यमदंडके प्रसादसे हम लोग खूब सुखी रहे । कुछ देर बाद उन्हें पान-सुपारी देकर राजाने फिर वही बात उनसे पूछी। उन लोगोंने फिर भी वैसा ही उत्तर दिया। इसके बाद राजाने महाजनोंको बिदा कर विचार किया आश्चर्य है कि इस यमदंडने सबहीको अपने वशमें कर लिया। अवश्य यह दुष्टात्मा है और मेरा द्रोही है । किसी न किसी उपायसे इसे मार डालना ही अच्छा है । इसको For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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