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सम्यक्त्व-कौमुदी -
ant प्रकाशित कर देता है और तारागण बहुत मिलकर भी ऐसा नहीं कर सकते - वे बहुत होकर भी असमर्थ हैं । यह सुनकर तो मंत्रीने स्पष्ट ही कह दिया कि महाराज, जान पड़ता है अब आपके विनाशका समय आ पहुँचा, नहीं तो आपकी बुद्धि ऐसी उल्टी न होती । देखिए, सोनेका हरिण न तो किसीने बनाया और न किसीने उसे पहले देखा, तौ भी रामचन्द्रको सुवर्णमृगकी तृष्णा हो आई । ठीक ही है, विनाशके समय बुद्धिमें फेर पड़ ही जाता है । बहुतोंके साथ विरोध करनेसे भी विनाशके सिवाय और कुछ नहीं होता । महाराज, इसी सम्बन्धमें मैं सुयोधन राजाकी एक कथा कहता हूँ । आप सावधान हो कर उसे सुनिए ।
हस्तिनापुरमें सुयोधन नामका राजा राज्य करता था । कमला उसकी पट्टरानी थी तथा गुणपाल नामका उसके पुत्र था । पुरुषोत्तम उसका मंत्री था। मंत्री सब राजनीतिमें चतुर था । इसलिए राजाका उस पर प्रेम था। नीतिकारने कहा है, जिनके मंत्रसे - परामर्शसे कार्योंकी सिद्धि होती है और जिनका कार्य भी अपने स्वामीका हित करनेवाला होता है, वे ही सच्चे राजमंत्री हैं। जो केवळ गाल फुलाना जानते हैं वे मंत्री होनके लायक नहीं । राजपुरोहितका नाम कपिल था । पुरोहित महाशय, जप, होम, आशीर्वाद आदि कार्यों में बड़े ही चतुर थे । कहा भी हैं कि जो सपूर्ण शास्त्रोंका वेत्ता हो, जप और होममें तत्पर हो, और आशीर्वाद देनेमें चतुर
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