________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४२
सम्यक्त्व-कौमुदी
डालेगा। खैर, अब जो होगा वह भोगना ही पड़ेगा। ऐसा विचार कर उसने अपने सब परिवारके लोगोंको बुलाकर कहा-मेरा तो जो होना होगा वह होगा, परन्तु तुम लोग दानपूजा आदि धर्मकार्योंको न छोड़ना। क्योंकि नीच लोग तो विनोंके भयसे कोई काम ही प्रारंभ नहीं करते, और मध्यम श्रेणीके पुरुष काम तो प्रारंभ कर देते हैं, पर विन आजाने पर उसे छोड़ बैठते हैं। पर उत्तम पुरुष वे हैं जो वार वार विन्न आने पर भी प्रारंभ किये हुए कार्यको नहीं छोड़ते । इसलिए हम पर यद्यपि इस समय बड़ी भारी आपत्ति आई है तो भी तुम लोग अपना धर्मकार्य करते ही चले जाना। - यह सब हाल-चाल देखकर किसीने सेठसे हँसीमें कहाक्यों सेठजी, आपके ब्रह्मचारी महाराज अच्छे तो थे न ? सेठजीने तड़ाकसे उसे मुंहतोड़ जवाब दिया, कि हो क्या गया? माना कि वह मायाचारी था, पर इससे बिगड़ क्या गया ? ___ एक पापीके अपराधसे शासनकी क्या हानि हो गई ? अपने पापसे वही पापी नष्ट हुआ। अयोग्य लोगोंके अपराधसे क्या धर्ममें मलिनता आती है ? एक मेंढ़कके मरजानेसे समुद्र गैंदला नहीं होता । और सुनो, यह कलियुग है, इसमें सच्चे पुरुष मिलने बड़े दुर्लभ हो गये, राजकीय करोंके कारण देश दरिद्र हो गये, राजा लोग लोभी हो गये, चोर लूटने लगे, स्त्रियाँ छीजती जाती हैं, सज्जन पुरुष दुःख भोगते हैं और दुर्जन मौज उड़ाते हैं । मतलब यह कि कलियुगका
For Private And Personal Use Only