________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१२०
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्यक्त्व-कौमुदी -
तुमने बहुत अच्छा काम किया जो व्यसनोंको छोड़कर धर्मको स्वीकार किया। क्योंकि जैसे चन्द्रमाके विना रात्रि की, और कमलोंके बिना सरोवर की शोभा नहीं उसी तरह धर्मके बिना जीवनकी भी शोभा नहीं ।
1
उमय भी तब बेचने के लिए बहुतसा सामान खरीद कर अपने कुछ मित्रोंको साथ लिए उन व्यापारियोंके साथ अपनी जन्मभूमि उज्जयिनीकी ओर चला । उमय अपने माता-पिताको देखनेके लिए बड़ा उत्सुक हो रहा था । इसलिए वह उन व्यापारियोंका साथ छोड़कर अपने मित्रोंको लिए आगे बढ़ा | चलते चलते रात हो गई । उमयको रास्ता मालूम न होनेसे वह एक भयानक जंगलमें जा पहुँचा । उन सबने रात वहीं बिताई । सबेरा हुआ । उमयके मित्रोंको भूख लगी । उन्हें कहींसे देखने में अच्छे, रसीले, पर मरणके कारण ऐसे कुछ किंपाक - फल ( विष फल ) मिल गये । उन फलोंको उन्होंने खालिया । उमयको भी वे फल दिये गये । उमयने पूछा- इन फलोंका नाम क्या है ? उसके मित्रोंने कहा- तुम्हें नामसे क्या मतलब ? जो फल कड़वे हों, नीरस हों, और बे-स्वाद हों उन्हें न खाना चाहिए और इन सिवाय फलोंको खाकर अपनी भूख मिटा लेनी चाहिए । उमयने कहा ठीक है, पर मैं बिना नाम जाने किसी फलको नहीं खा सकता । मेरा ऐसा नियम है । यह कहकर उमयने उन फलों को नहीं खाया । फल खानेके थोड़ी ही देर बाद
For Private And Personal Use Only