________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्यक्त्व-कौमुदी
बुद्धसिंहका पद्मश्रीके साथ सचमुच ही विवाह हो गया । बुद्धसिंह पद्मश्रीको लेकर घर आगया। घर पर आते ही पिता
और पुत्र दोनोंने फिरसे बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया। यह देखकर वृषभदासको बड़ा खेद हुआ । उसने विचारा-गुप्त प्रपंचोंको कोई नहीं जान सकता । विष्णुका रूप बनाकर एक कोरीने राजाकन्याके साथ वर्षांतक सुख भोगा । सर्च है-छुपे छलका ब्रह्मा भी पार नहीं पा सकता । जो दुष्ट धनादिककी लालसासे अविश्वासकी घर मायाको करता है, वह उससे होनेवाले बड़े बड़े अनर्थों को नहीं देखता । बिल्ली दूध तो पीती है, पर ऊपरसे पड़नेवाली लाठियोंकी मारको नहीं देखती । जो हो, उन्हें ऐसा करना उचित नहीं था। क्योंकि गुरु-साक्षीसे लिए व्रतका प्राणान्त हो जाने पर भी भंग न करना चाहिए । स्वीकृत व्रतके भंग करनेसे बड़ा दुःख होता है । कारण व्रत बड़ी कठिनतासे प्राप्त होता है
और प्राण तो जन्म जन्ममें बने बनाये हैं। बुद्धदास पहले बौद्धधर्मी था, उससे जैनी हुआ और फिर बौद्ध हो गया। यह उसने अच्छा नहीं किया। यह विचार कर बेचारा वृषभदास चुप रह गया। ___ एक दिन बुद्धदासके गुरु पद्मसंघने पद्मश्रीसे कहा-पुत्री, सब धर्मों में एक बौद्धधर्म ही श्रेष्ठ धर्म है। इसलिए तू भी इसे स्वीकार कर। यह सुनकर पद्मश्री बोली-गुरुजी, बौद्धधर्म नहीं, किन्तु जैनधर्म ही सब धर्मों में उत्तम है । अतः मैं इसे
For Private And Personal Use Only