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मन्त्र-ब्राह्मणम् ।
त्सराय परिवत्सराय संत्सराय क्रगुता बहन्नमः। तेषां वय सुमतौ यज्ञियानां ज्योगजीता बहतास्थाम ।। १२ । भद्रान्तः थेयः समनैष्ट देवास्त्वया वसेन __ हे स्तोतार: ! येभ्यः मनुष्य-पिट-देव-सम्बन्धि-तत्तत्-वत्सर विशेष-कालेभ्यः इदं हविः 'बहत् इत्' वृहदेव, यूयं 'कणुत' कुरुत, तस्मै 'वत्सराय परिवत्सराय संवत्सराय' तत्तत्-काल-विशेपाय 'नमः' 'तेषां' वत्सराणां 'यजियानां' यचहेतुभूतानां, 'सुमतौ' शोभनाया बुद्धी, वर्तमानाः 'वयं' 'ज्यीक्' चिरं, 'जौताः' दुरितानां जेतारः सन्त:, 'अहताः' अपौड़िताः, 'स्याम' भवेमेति प्रायते ।। १२ ॥ ___ हे 'देवाः !' ब्रीहिमया, 'त्वा' त्वां, वयं 'सशौमहि' আমরা একশত শরৎ ঋতু অর্থাৎ শতসংবৎসর যেন তােমাদিগের আশ্রয়ে নির্ভয়ে থাকি, [ অর্থাৎ রােগ-শােকাদি শূন্য एरेशा प्यन भांशू र] ॥ ॥
হে স্তাতৃগণ! তােমরা মনুষ্য, পিতৃ, দেব সম্বন্ধি যথাক্রমে বৎসর, পরিবৎসর, সংবৎসর নামক যে সকল কাল বিশেষে এই হবি প্রশস্ত করিয়া থাক, সেই সকল বৎসরাদি কাল বিশেষকে নমস্কার করি আমরা যজ্ঞ সকলের জনস্বরূপ সেই সকল বৎসরাদির অধীন হওতঃ সুমতিশালী হইয়া, চিরকাল যেন দুরিত জয়ী হইয়া রােগাদিঘারা অসংস্পষ্ট হইয়া থাকি । ১২।
१२-संवत्मरी देवता। विष्ट पछन्दः । श्राज्यहोमे विनियोगः ।
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