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मन्व-श्राह्मणम् । श्विनौ देवा वाधत्तां पुष्करखजौ ॥६॥ यत्तेसुसीमे
हृदय हितमन्तः प्रजापतौ॥ वेदाहं मन्ये तद् ब्रह्ममाह पौत्रमघं नि गाम॥१गायत्पथिव्या अनामतं दिवि 'मित्रावरुणौ' अहोरात्ररूपी देवौ ‘ाधत्ताम्' स्थापयताम्। यथा 'ते' 'मेधाम' 'अग्निः' देव: 'दधातु' स्थापयतु। तथा 'ते' 'मेधा' 'पुष्करस्रजो' अम्बरमाला-धारिणौ 'अखिनो' सूर्याचन्द्रमसौ 'देवी' प्रदीप्तौ “आधत्ताम् स्थापयताम् ॥ ८ ॥
हे चन्द्र ! 'यत्' 'ते' तव 'प्रजापतौ' प्रजापालके 'सुसीमे' ज्योत्स्नारुप-शीतल-द्रव्ये 'अन्तः' प्रविष्टतया "हृदय" सारभागः 'नि' 'हित' स्थापितमस्ति, 'अहं' 'तत' 'वेद' जानामि, 'ब्रह्म' सर्ववापकम् इति ‘मन्ये' , ततश्चास्ति वालकान्तरेपि, अतः सम्भावये-'पौत्र” पुत्रसम्बन्धि 'अघं' पापफलं शोकादिकं 'मा गाम्' नाप्नु याम् ॥ १० ॥
হে বালক! এই আহােরাত্র দেবতারা তােমাতে মেধা স্থাপন করুন, এই অগ্নি দেবতা তােমাতে মেধা স্থাপন করুন, অম্বরমালাধারী এই প্রদীপ্ত চন্দ্র সূৰ্য্য দেবতারা তোমাতে মেধা স্থাপন করুন। ৯।
হে চন্দ্র! প্রজাগণের পােষক ত্বদীয় শীতল জ্যোৎস্নার অন্তর্গত যে সার পদার্থ আছে, আমি তাহাকে সর্বব্যাপী বলিয়া জানি, সুতরাং মদীয় বালকান্তরেও অবশ্য আছে ; অতএব ভরসা করি---আমি পুত্র সম্বন্ধি পাপ-ফল (শােকাদি) शाख शेत न ! 1.
मित्रावरुणादयो देवताः । अन् टप कुन्दः । सर्पिःप्राशने विनियोगः । १०-एषां चतुणां चन्द्रौदेवता : सनष्ट प कन्दः । शिशी: प्रसवदिन तृतीयस्यां ज्योत्. सायां चन्द्रदर्शने विनियोगः ।
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