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प्र. ४१०८-५ ख ७१।
नम्मिः पुमानिन्द्रः पुमान्देवो बृहस्पति: । पुमा पुत्र विन्दखतं पुमाननु जावताम् ॥६॥ দেবতা ইন্দ্র (আকাশ) যেরূপ পুরুষ, এই অতিবিপুল রাশি চক্রের পালন কৰ্ত্তা সূৰ্য যেরূপ পুরুষ—তুমিও সেইরূপ পুরুষ সন্তান লাভ কর। অপিচ সেই সন্তানের পরে তােমীর উদরে আরও প্রজননশালী সন্তানগণ উৎপন্ন হউক।৯ इति सामवेदीये मन्त्र-ब्राह्मणे प्रथम प्रपाठक स्य
चतुः खण्डः ॥ ४॥
॥ अथ पञ्चमः खण्डः ॥ अयम् र्जावतो क्ष ऊर्जीव फलिनो भव ॥ पर्णम्बनस्पते नत्वा नत्वा मयता यिः ॥१॥ येनादिते: सोमानं _ 'अयम्' 'उर्जावतः' उडुम्बरः वृक्षः 'उर्जी बहुतेजःसम्पन्नः 'स्व' अयमिव त्वमपि ‘फलिनौ' बहुतरफल शालिनी बहुपुत्रवती भव । हे 'वनस्पते! 'पर्ण' स्वकोयछ दनं 'नुत्वा नुत्वा' भूयः प्रेरयित्वा तथासंख्यो वेतिभावः ‘रयिः' धनं 'सूयताम्' प्रसयताम् अस्यै इतार्य: ॥ १
এই বহু-ফল-শালী তেজস্বী উড়ম্বর বৃক্ষের ন্যায় তুমি পুত্ররূপ বহু-ফল-শালিনী হও। হে উড়ম্বর বৃক্ষ ! তােমার পত্র পত্র গণনা করিয়া তৎপরিমিত ধন ইহার জন্য প্রনব ।
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