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१५० ४ख ५-~01
सपाणि पशत पासिंचन प्रजापति र्धाता गर्भन्दधातु ते॥६॥गर्भन्धेडिसिनीवालि गर्भन्धेहि मरखति। गर्भ ते अश्विनौ देवा वाधता पुष्करन जौ ॥७॥
है बधु ! 'विष्णुः' वापको देवः ‘तें तब योनि' गर्भस्थानं 'कल्पयतु गर्भग्रहणोपयुक्तां करोतु। त्वष्टा' स्रष्टा सएव देवः 'रुपाणि' गीकारान् ‘पिंगतु प्रकाशयतु । तमेव गौं गर्भस्थानं योनि वा सएव 'प्रजापतिः' प्रजानां पालको देवः 'आ सिञ्चत सिञ्चनं करोतु जोवनीनामशक्तप्रतिशेषः । 'धाता' धारयिता मएव देवः तं दधातु' धारयतु ॥ ६ .
है 'सिनीवालि' चन्द्र-शक्त ! अस्यां 'गर्भ' धेहि धारय पोषय वा। हे 'सरस्वति' अस्मद्वाणि ! अस्यां गर्भ धेहि अस्मत्कथनादेवास्यां गर्भमस्तु इतिभावः । हे वधु ! 'अश्विनी देवी' द्यावापृथिवी ! ते तव 'गम्' ‘ाधत्ताम्' धारयताम् कीदृशौ तावित्याह ---'पुष्करसी' पुष्करमम्बरमेव सगिव स्वग ययोः तो. अम्बरेण वापितावित्यर्थः ॥ ७
হে বধু ! বিষ্ণু (ব্যাপক দেব) তােমার যোনি প্রদেশকে গর্ভ গ্রহণােপযুক্ত করুন। স্রষ্ট রূপী সেই দেব তাহাতে গর্ভাকার প্রকাশ করুন। প্রজাগণের পালক সেই দেবতা জীবনী শক্তিতে সেই গর্ভ সিঞ্চন করুন। ধারয়িতা রূপী সেই দেব তাহাকে ধারণ করুন, যাহাতে গর্ভ নষ্ট না হয়! ॥৬
হে চন্দ্রমার অমৃতময় শক্তে ! এই বধুতে গর্ভ ধারণ কর। - হে অম্মদ বাক্যামৃত ! এই বধূতে গর্ভ ধারণ কর। হে বধু :
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