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१५.४ख १-४।
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त्वं देवानां प्रायश्चितिरमि ब्राह्मणत्वाना यकामउपधावामि यास्या अपुत्रा तनूस्तामस्था अपजहि॥३.सूर्य प्राचित्ते त्वं देवानां प्रायश्चित्तरसि ब्राह्मणवा नाथ कामउपधावामि यास्या अपशव्या तनस्ता मस्या अप
पति-हनन-कारिणो 'तनः' 'या" स्यात्, ‘अस्याः' 'तो' तददूषण-विशिष्टां तनूम् 'अपजहि' दूषण-विनिर्मुक्तो कुरु इत्यर्थः॥२ ___'प्रायश्चित्त' कार्ये आराध्यमान 'चन्द्र !' 'व” 'देवानाम्' अस्मदादीनां 'प्रायश्चित्तिः' दोषस्य उपशमिता 'असि', अतः 'नाथ-कामः' 'अहं' 'ब्राह्मण:' 'त्वम्' 'उपाधाजामि', 'यस्याः' 'अ-पुत्रा' पुत्राय हिता पुया तदविपरीता वधयात्वादि-दूषणदूषिता 'तनूः' 'या' स्यात्, ‘अस्याः' 'ताम् 'अपजहि ॥३ ___ 'प्रायश्चिते' कार्य आराध्यमान 'मू य !' 'त्वं' 'देवानाम्' প্রায়শ্চিত্ত কাৰ্য্যে আরাধ্যমান হে চন্দ্র ! তুমি দেদীপ্যমান আমাদের দোষের উপশমকারী হইতেছ অতএব নাথকাম আমি ব্রাহ্মণ, তােমাকে অর্জন করিতেছি, তুমি এই বধূর শরীরে বন্ধ্যা হইবার কারণ যে কোন দোষ থাকে, তাহা দূর করিয়া দাও ৪৩ | প্রায়শ্চিত্ত কাৰ্য্যে আরাধ্যমান হে সূৰ্য্য ! তুমি দেদীপ্যমান আমাদের দোষের উপশমকারী হইতেছ অতএব নাথ-কাম আমি ব্রাহ্মণ, তােমাকে অৰ্চ্চনা করিতেছি, তুমি এই বন্ধুর শরীরে অ-পশব্য* দোষ যাহা থাকে, তাহা দূর করিয়া
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