________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श प्रद्युम्न- ना // 66 // यत एकाकिनी पत्नीं / मां मुक्त्वा प्राणवल्लभ // राज्यं जोक्तुं गृहे यासि / प्रतसु. चस्त्रिं खलिप्सया / / 67 // यद्यत्र मां विमुच्य त्वं / निजगेहं गमिष्यसि / / स्थापयिष्यति पुष्टात्मा / स्व. कलत्रेषु तद्ययं / / 60 // तदा हेमरथोऽवोच-न्मावादीदशुनं वचः // त्वचित्ते कल्पना याह-यो ताहग्मधुनपतेः // 6 // यदायमावयोर्गह-माकारितः समागतः / तदावान्यां कृता नक्तिस्तेन प्रीति करोत्ययं // 70 // श्वमेव विदित्वायं / स्नेहं दर्शयतीत्यलं / / ततस्त्वया न कर्तव्या / चिंता चित्ते मनागपि // 11 // ना पुनः पुनः प्रोक्तं / स्वीकृतं वचनं तया // विमुच्य सोऽपि तां तत्र / चचालाशकुनेष्वपि // 12 // हेमरथे महीपाले / प्रस्थिते स्वपुरंपति / / नवाच मधुम्रपालो / मंत्रिणं स्मरपीडितः // 73 // हेमरथस्त्वितोऽचाली-मया संतोषितो भृशं // धीसख त्वं ममोपांत-मिंदुप्रनामयानय // 14 // | मंत्र्यवोचन्महीपाल ! यावत्समेति शर्वरी // विधाय चेतसो दाढय / तावत्त्वया प्रतीक्ष्यतां // 15 // | प्रधानवचनं श्रुत्वा / मोदमानो महीपतिः // स्वकीयकामनासि / जानन सुखेन तस्थिवान् / / 16 / / मेधाविनायोगो / निशायां शर्मणे नवेत // श्तीवास्तमितो जानु-रुभयोर्विननीतितः // 17 // For Private and Personal Use Only