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( ४९ ) अनुमोदना द्वारा अपने पूर्व में किये हुये पापों की आलोचना करते हुये मरण पर्यंत महाव्रत या अणुव्रत प्रीति पूर्वक धारणकर शोक, भय, खेद, ग्लानि, कलुषता, अरति आदि भावों को त्याग कर साहस, शक्ति, उत्साह, धैर्य को प्रकट करते हुये भोजन का त्याग क्रम क्रम से करे । पश्चात् आहार का भी त्यागकर, दुग्धपान पुनः तक्रपान व उष्ण जलपान पश्चात् इसका भी त्याग कर उपवास धारण करता हुत्रा पंच परमेष्ठी का ध्यान व आत्मध्यान करते हुये णमोकार मंत्र का उच्चारण पूर्वक शरीर का सावधानी से त्याग करे।
अंतसमय जीवने की इच्छा, मरण की वांछा, मित्रों से अनुराग, पूर्व भोगों का स्मरण और आगामी भोगों की वांछा आदि दोषों को न लगावे।।
मेरी अंतिम मनोकामना है कि इस मुखप्रद सल्लेखना का लाभ सर्व जीव उठावें ।
सर्व जीवों प्रति-धर्म मैत्री का इच्छुकसि. कस्तूरचंद नायक
जवाहरगंज-जबलपूर ।। 8 समाप्त
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