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( ४३ )
श्रीमान् बाबा भागीरथजी महाराज आगये उनका सस्नेह आपको इच्छाकार । खेद इस बात का विभाव जन्य हो जाता है। जो आपकी उपस्थिति यहां न हुई। जो हमें भी आपका वैयावृत्ति करने का अवसर मिल जाता परन्तु हमारा ऐसा भाग्य कहां ! जो सल्लेखना धारी एक सम्यग्ज्ञानी पंचमगुणस्थानवर्ती जीव की प्राप्ति हो सके। आपके स्वास्थ्य में आभ्यंतर तो क्षति है नहीं, जो है सो बाह्य है । उसे श्राप प्रायः वेदन नहीं करते यही सराहनीय है । धन्य है श्रापको जो इस रुग्णावस्था में भी सावधान हैं। होना ही श्रेयस्कर है । शरीर की अवस्था अपस्मार वेगवत् वर्धमान हीयमान होने से ध्रुव और शीतदाह ज्वरावेश द्वारा अनित्य है । ज्ञानी जन को ऐसा जानना ही मोक्षमार्ग का साधक है। कब ऐसा समय आवेगा जो इसमें वेदना का अवसर ही न आवे ।
आशा है एक दिन आवेगा । जब आप निश्चल वृत्ति के पात्र होवेंगे । अथ अन्य कार्यों से गौण भाव धारण कर सल्लेखना के ऊपर ही दृष्टि दीजिये और यदि कुछ लिखने की चुलबुली उठे तब उसी पर
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