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अंतिम निवेदन- अंतमें निवेदन यह है कि जब
गृहस्थ व्रतों को धारण करते हुये अंत में सल्लेखना करते हैं और जिननें पूर्व में व्रत भी धारण नहीं किये यदि उन जीवों को भी मरण के समय समाधि का लाभ हो जावे तो वे अवश्य सद्गति को प्राप्त करते हैं । इसीलिये पूज्य पंडित जी ने उपरोक्त महानुभावों को लक्ष्यकर सर्व साधारण के कल्याण के लिये समाधिमरण का उपदेश दिया। परन्तु इस अमूल्य अनुपम उपदेश को मुनिश्रावक और सामान्य गृहस्थ भी, ज्ञान रहस्य मय शब्दों को पठनकर, अपना आत्म कल्याण कर सकते हैं तथा जिनको वर्तमान दुःखमय संसार में ऐसे महान भावज्ञानी पुरुष का दर्शन दुलभ हो अवश्य उनके रामवाण तुल्य अचूक ज्ञानोपदेश वचन पठनकर वास्तविक प्रत्यक्ष सुखामृत पान कर सकते हैं और अंत में समाधि का लाभ उठा सकते हैं।
अतः इस बालक की यही प्रबल इच्छा हुई कि ये पत्र छपाये जावें तो अवश्यमेव सर्व जीव चकोरों
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