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देखकर स० सिं० छिकोड़ीलालजी के आत्मज स० सिं० दमड़ीलाल जी ने ५०० प्रतियां और श्रीयुत् लालचंद जी के आत्मज पन्नालाल जी ने २५० प्रतियां छपाकर और भो वितरण कराने की उदारता प्रगट की है अतः उपरोक्त महानुभाव विशेष धन्यवाद के पात्र हैं। धर्म सहानुभूति- इन अनुपम ज्ञानपुंज पत्रों को
छपाने में पंडित शिखरचंद जी ने बहुत कुछ अपना अमूल्य समय व्यतीत किया है। जहां तहां श्लोकों का भी अर्थ लिखा है। इसके लिये
आपको भी कोटिशः धन्यवाद है। प्रबल इच्छा- जिस दिन से शांतिसिन्धु गजट में इन ज्ञानरत्न पत्रों को पढ़ा उसी दिन से भावज्ञान का हिंडोला मेरे हृदय में झूलता रहता है । भेद विज्ञान को प्रगट कर शरीरादिक परद्रव्यों में निष्पृहता, अपने स्वरूप में लीनता और कषायों की मंदता आदि गुणों की ओर आत्मा सतत् व्यापार करने की चेष्टा करता रहता है।
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