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साधुसाध्वी
॥ २२ ॥
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जोअहि तुह समा, भवणुवयारसहाव भाव करुणारस-सत्तम ॥ सम-विसमं किं घणु नियइ भुवि दाह समंतओ! इय दुहबंधव ! पासनाह ! मई पाल धुणंत ॥ २४ ॥ न य दीणह दीणय मुवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं | जोइविओवयारु करइ उवयारसमुज्जय || दीणह दीणु निहीणु जेण तुह नाहिण चत्तउ, तो जुग्गड अहमेव पास पालहि मई चंग ।। २५ ।। अह अणुवि जुग्गयविसेसु किवि मण्णहि दीणह, जं पास वि उबयारु करइ तुह नाह समग्गह ॥ सुचिअ किल कलाणु जेण जिण तुम्ह पसीयह, किं अक्षिण तं चैव देव ! मा मइ अवही|रह ॥ २६ ॥ तुह पत्थण नहु होइ विहलु जिण जाणउ किं पुण, हउ दुक्खड निरु सत्तचत्त दुक्कउ उस्सुगमण ॥ तं मण्णउ निमिसेण एड एओवि जइ लग्भइ, सचं जं भुक्खियवसेण किं उंबरु पचइ ॥ २७ ॥ तिहुअणसामिअ पासनाह ! मह अप्पपयासिउ किज्जउ जं नियरूवसरिसु न मणुं बहु जंपिड | अण्णुण जिण जगि तुह समो वि दक्खिण्णु-दयासउ, जइ अवगिण्णसि तुह जि अहह किं होइस हयासउ ॥ २८ ॥ जइ तुह रूविण किणवि पेअपाइण वेलवियड, तवि जाणुं जिणपास तुम्ह ह अंगीकरिअउ ॥ इय मह् इच्छिअ जं न होइ सा तुह ओहावणु, रक्खंतह नियकित्ति शेष जुज्जइ अवहीरणु ।। २९ ।। एव महारिह जन्त देव एहु न्हवणमहूसउ, जं अणलियगुणगहण तुम्ह मुणिजणअणिसिद्धउ ॥ इय मई पसिय सुपासनाह थंभणयपुरद्विअ, इय मुणिवरु सिरिअभयदेव विष्णव अनिंदिअ ।। ३०. ॥ इति श्रीस्तम्भनकतीर्थराजश्री पार्श्वनाथस्तवनम् ॥
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प्रतिक्रमण सूत्र.