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उत्तर क्रिया करनेका विधान
७३ ॥ (१) भूमिशुद्धि ॥ ॐ भूरसी भूतधात्री सर्वभूतहिते भूमि भुद्धिं कुरु कुरु नमः । यावदहं पूजा करिष्ये ताव सर्वजनानां विघ्नान विनाश विनाश सिरिभव सिरिभव स्वाहा।
इस मंत्र को बोलकर भूमिशुद्धिके लिये पृथ्वी पर वासक्षेप डालना चाहिए।
॥(२) अंगन्यास ॥ ॥ हाँ हृदय, ही कण्ठ, हूँ तालु, हाँ भ्रूमध्य, हूँ ब्रह्मरन्ध्रेशु॥
उपरोक्त मंत्र बोलते समय हृदय, कण्ठ, तालु आदि के हाथ लगाते जाना और क्रमवार बोलना।
॥ (३) सकलीकरण ॥ ॥ति, पीतवर्ण जानुनो, प, स्फटिक वर्णनाभौ, ॐ रक्तवर्ण हृदय, स्वा, नीलवर्ण मुखै, हाः मृगमदवर्ण भालै ॥
उपर बताये अनुसार बोलते जाना और जानु, नाभि, हृदय, मुख, और भाल पर हाथ लगाते जाना बादमें उलटा जाप इस तरह करना।
॥हाः मृगमदवर्णभालै, स्वा नीलवर्णमुखै, ॐ रक्तवर्ण हृदये, पः स्फटिकवर्णनाभौ, क्षि पीतवर्णजानुनो इस तरह
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