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गिलम
गुंदरना गिलम--संज्ञा, पु० [फा० गिलीम मुलायम गद्दा, उदा० ऐपन पिंडी सी मोड़ी पिंडुरी उमड़ि, मेड़ बिछौना।
बेड़न लगावै, पेड़ पाइन गुझकती। (क) उदा० झालरनदार अकि झूमत बितान बिछे
-देव गहब गलीचा अरु गुलगुली गिलमै ।। गुझनोट-संज्ञा, पु० [सं० गुह्य+हिंः प्रोट].
--पद्माकर कंडील, फानूस । (ख) गिलम गलीचन पं अतर सु पुष्पन के, उदा० दीपति देह मनोज कियो गुझनौट को दीप चन्दन कपूर पै फुहार पिचकारी को।
ज्यौं राजत प्राछ ।
--तोष -पजनेस गुझाना-क्रि० सं० [सं० गुह्य] १. लुप्त करना, गिलान-संज्ञा, स्त्री० [फा० गिल] मिट्टी, २. छिपाना २. नष्ट करना । गारा, गिलावा ।
उदा० देव दीनबन्धु दयासिन्धु सिन्धुरादि के । उदा० मीन मुग-खन्जन सिखान भरे मैन-बान.
सहाय ह्व प्रबन्धु की मदन्धता गुझाई है । अधिक गिलान भरे, कंज कल ताल के ।
-देव -ग्वाल
२. मोह महामद के उनमाद मदान्यो नहीं गिल्ला-संज्ञा, पु० [फा० गिला] शिकायत,
मदनागिनि गूझ्यो ।
-देव गिला, बुराई । उदा० मूरख अतिहि रिसाय माधवनल से गुनी
गझोर--संज्ञा, पु० [सं० गुह्य+पावत] शिकन,
कपड़े की सिकुड़न । पर । ढिग आवत उठ जाय फिर पीछू
उदा. गात में गझौर परि अँगिया उमंग उर गिल्ला करै।
-बोधा गीता-संज्ञा, स्त्री० [सं०] वृतान्त, हाल, समा
ताय तनि पोहीपोत पोति है तिफेरी की।
-देव चार । उदा० राम चले सुनि शुद्र की गीता। पंकजयोनि
गुधना--क्रि० अ० [हिं०गोदना] धंसना, घिरना,
चुभना। गये जहें सीता ।
-केशव गीधना क्रि० प्रा० [बु.] परचना, लहटना ।
उदा० जात बनै न तिते कँपै गात, इतै पर नैननि लाज रही गुधि ।
--बेनी प्रवीन उदा० बीधे मो सों पान के, गीधे गीहि तारि ।
गुटौं- संज्ञा, स्त्री० [हिं० गुड़ी] ग्रन्थि, गाँठ ।
- बिहारी गीर-संज्ञा, स्त्री० [सं० गी:०] वाणी, आवाज,
उदा० पंचतत्व प्रगट ते कपट गुटौ सी खुली, ह्र ध्वनि ।
हैं और रंग बर संगिहि लगाइ लै । उदा० कुज तजि गुजत गम्भीर गीर तीर, तीर,
-सोमनाथ रह्यो रँगभौन भरि भौंरन की भीर सों। गुड़ी-संज्ञा, स्त्री [बु.] १. गाँठ, दुराव २.
-देव
पतंग । गीरपति-संज्ञा, पु० [सं० गी०=वाणो+ | उदा० १. हिलमिल हहिं करत चतुराई दिल की पति]
गुड़ी न खोलौ।। -बक्सी हंसराज १. विद्वान्, गीति, वृहस्पति ।
२. गुड़ी उड़ी लखि लाल की अंगना अँगना उदा० कवि सेनापति कुसल कलानिधि गुनी गीर
माह ।
-बिहारी पति ।
-केशव
गुढ़ना--क्रि० अ० [सं० गुह्या छिपना, लूकना । गुजरान-संज्ञा, स्त्री० [फा० गुजरान] १. गुजर
उदा० बरुनी बन दुग गढ़नि में रही गूढी करि २. प्रवेश, पहुँच, आगमन ।
लाज ।
--बिहारी उदा० १. बोधा कवि धन गुण रूप की कहाँ लौ गढ़ाना--क्रि. सं० [सं० गुढ़] १. छिपाना, . कहीं दान औ पुरान गुजरान द्योस रैन की।। दुराना २. क्रि० प्र० गुढ़ना छिपना ।
-बोधा उदा० १. मृदु मुसकाइ गुढ़ाइ भुज घन चूंघट उल २. सो कजरा गुजरान जहाँ कनि बोधा
झारि ।
-पदमाकर जहाँ उजरान तहाँ को ।
-बोधा
२. बरुनी बन दृग गढ़नि में रही गुढ़ौ करि गुझकना-क्रि० प्र० [सं० गुह्य] छिपना, दुरना
लाज ।
-बिहारी आड़ में होना।
गुवरमा-क्रि० सं० [फा० गुजर+हिं० ना
गुनी गीत गुदा बरुनी
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