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-देव
गलीम
गहरना गलीम-संज्ञा, पु० [अ० गनीम] शत्रु, बैरी,
गहयो काजर चखन चटकायो है। दुश्मन । उदा० दिग-बिजय काज महूम की। अरि देस- गहगहाना--क्रि० अ० [हिं० गहगहा] सोल्लास
देसन धूम की। गूजर गलीम लगाइक सु - फूलना, विकसित होना । बुन्देलखंडहि प्राइकै ।
- पद्माकर उदा० महमही मंद मंद मारूत मिलन तैसी, गहगलेले-संज्ञा, पु० [अनु॰] क्रीड़ा, किलकारी,
गही खिलनि गुलाब की कलीन की । हर्ष की ध्वनि ।
-रसखानि मु० गलेले देना, किलकारी मारना, क्रीड़ा
गहन-संज्ञा, पु० [देश॰] उच्च स्वर । करना, हर्षोल्लास प्रकट करना ।
उदा० गहन गहन लागे गावन मयूर माला । उदा० लोह के अलेल मैं गलेल देतं भूत भिर,
झहन झहन लागे रोम रोम छन में । रु डन कों प्रेत औ पिसाच सहचारी है।
-श्रीपति -चन्द्र शेखर गहब-वि० [सं० गह्व?] १. मोटा, सघन, २. लोहू के अलेले गंग गिरजा गलेले देत ।
भरा हुमा ३ प्रफुल्लित । चोथ चोथ खात गीध चर्ब मुख चोपरी ॥
उदा० १. बिछे गहब गलीचा अरु गुलगुली गिलमैं । -गंग
-पद्माकर गलौ-संज्ञा, पु० [सं० ग्लौ] चन्द्रमा, शशि ।। २. गोल गोल गहब गरूर गुन गेंदा एक मँजुल उदा० गंगा गाइ गोमती गलौ ग्रहपति अरु सूर
मुकुर कोमलाई कंज केरे हैं। -पजनेस गिर ।
-सूदन ३. गुल पर गालिब कमल है कमलन पै सु गवेले- [हिं० गँवार, सं० ग्रामीण] ग्रामीरण,
गुलाब, गालिब गहब गुलाब पै मो गाँव के रहने वाले लोग।
मुरभि सुभाव ।
-पद्माकर उदा० नीचे खरे सुनत प्रवीन लोग बीन जानि
दस गुनी दीपति सों गहब गछे गुलाब । कहत गबेले इहाँ कोकिल बसति है।
-द्विजदेव --कालिदास
पहभर-वि० [सं० गद्गद्] आवेग, अवरोध, गस-संज्ञा, स्त्री० [हिं० गाँस] गाँस, गाँठ।
रुकावट, रुधना ।। उदा० अरु जी निलजे ह मिलै तौ मिलौं, मन
उदा० गहभरे कंठनि आप । ब्रज-सुन्दरी भरि तें गस-गूज न खोलिय री।
ताप ।
-सोमनाथ --घनानन्द
गहमह-संज्ञा, स्त्री० [हिं० गहगह] चहल-पहल गसना--क्रि० अ० [सं० ग्रसन] फँसना ।
रौनक, धूम । उदा० बिधु कैसी कला बधू गैलन में गसी ठाढ़ो उदा० गो रंभन गहमह खरिक, साँझ दुहारी गोपाल जहां जुरिगो।
- पजनेस
बेर । गसीले-वि० [हिं० गाँस] गाँस भरे हुए, कपटी,
पलकनि पौंछत रज तहाँ प्रिया पीय मुख छली।
-नागरीदास उदा० कहाँ लौं तिहारे गुन गुनियै गसीले स्याम,
गहर-संज्ञा, पु० [सं० गह्वर] प्रबल, शक्तिसुखिया सुतंतरही अन्तर पिराय कै।
शाली। -घनानन्द
नदा० गीषम गहर गनीम को, गारब गरब गहकना-क्रि० प्र० [सं० गद्गद्] ललकना,
भुकारि ।
-चन्द्रशेखर उमंग से भरना, लपकना ।
गहरत-क्रि० वि० [हिं॰ गहर] मंद-मंद ।। उदा० माच्यो घमासान तहां तोप तीर बान चले, ] उदा० 'सेवक' त्यों गहरत पावै ज्यों-ज्यों बांसूरी मंडि बलवान किरवान कोपिं गहकी गंग
सों कहरत पावै मन मेरो मानि दूर को । गहकि, गाँसु और गहे रहे अधकहे बैन ।
-सेवक -बिहारी | गहरना-क्रि० प्र० [सं० गह्वर] १. उलझना, गहगहा-वि० [सं० गम्भीर] गाढ़ा, गहरा ।
टकराना, फँसना २. झगड़ना ३. बिलम्ब उदा० लहलहयौ योबन हँसत डहडहयो मुख गह-J करना । - [हिं० गहर=देर]
हेर ।
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