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निवास ।
कृपाउसे ( ५० )
कोपरा उदा० घर घर कूहर सी भई कूह रही पुर
केर-संज्ञा, पु० [हिं० करील] करील, काँटेदार छाय । ऊहर सब कूहर भई
एक वृच्च । बनितन लगी बलाय ।
उदा० सपत बड़े फूलन सकुचि सब सुख केलि
--वोधा कृपाउस-संज्ञा, स्त्री० [सं० कृपा] कृपा, दया ।
अपत कर फूलत बहुत मन में मानि हुलास । उदा० माई रितु पाउस कृपाउस न कीनी कंत् करव-संज्ञा, पु० [सं०] १. शत्रु, २. कुमुद, . छाइ रह्यो अंत् उर बिरह दहत है।
३. सफेद कमल ।
-सेनापति उदा० १. त्यों अलि कोकिल के कल करव क्यों केम-संज्ञा, पु० [सं० कदंब] कंदब नाम का
बचिहैं दुख सिधु अगाधे । --चन्द्रशेखर वृक्ष ।
को- संज्ञा, पु० [देश॰] पुत्र, लड़का । उदा० खेल न रहिबौ खेम सौं केम कुसुम को बास उदा० एरी मेरी बीर जैसे तैसे इन प्रॉखिन सों
--बिहारी
कढिगी अबीर पै अहीर को कढ़ नहीं। लग्यो तरु तावन सावन मास ।
-पद्माकर प्रजारति कम कुसुमिय बास ॥
राजा मिले अरु रंक मिले कवि बोधा --बोधा मिले निरंसक महा को।
-बोधा केल-कुंज-संज्ञा, पु० [सं० कदलीबन] कदली- कोठ-संज्ञा, पु० [सं०प्रकोष्ठ[ कलाई, प्रकोष्ठ । कुज, केला का बन ।
उदा० ठिले कोठ बांधे धरे तेग काँधे । उदा० माली तजि मौन करि गौन हित-भौन
तुरंगान साधे सबै जुध्ध ना। चलि, केल करि केल-कुज केलि के उपाइ
--पद्माकर करि।
-आलम कोत-अव्य० [देश॰] और, तरफ से । केवली-संज्ञा, पु० [सं० कैवल्य] मुमुच, मोक्ष । उदा. होत अरुनोत यहि कोत मति बसी पाजु, प्राप्त करने के इच्छुक २. वीतराग, विज्ञानी।
कौन उरबसी उरबसी करि पाए हो। -दूलह उदा० केवली समूढ़ लाज हूँढ़त ढिठाई पैये ।
सीताजू की खबरि दियो जो प्राइ ताकी चातुरी अगूढ़ गूढ़ मूढ़ता के खोज है।
कोत जो जो मांगी प्राजु हनुमान सो सो --देव लीजिये।
-रघुनाथ कैनि-संज्ञा, स्त्री० [फा० कोरनिश] प्रार्थना,
कोते - वि० [फा० कोताह] थोड़ा, कम। बिनती, कुन्नस ।
उदा० राग बिरागनि के परिभन हास विलासनि उदा० विधि विधि कनि करै टरै नहीं परेह पान
ते रति कोते ।
-केशव .. चित कितै ते लै धरो इतो इते तनु मानु ! कोंबर-संज्ञा, पु० [बुं०] खाँडर, वृक्ष का छिद्र ।
-बिहारी
। उदा० भूल बिसर जिन डारौ कबहूँ कोंदर खदरन कैफ--संज्ञा, पु० [अ० कैफ] नशा, नशीली
हाथू ।
-- बकसी हंसराज वस्तु।
कोद-अव्य० [सं० कोण] ओर, तरफ । उदा० बद्दल बिलंद बरसा के बिरुदैत कछु, कठिन उदा० केतकी रजनि अरगजनि मधुर मधु, राका कजाक कैफ खाये से फिरत हैं।
की रजनि राज रंजित चहूँ कोदनि ।-देव
---'चातुर कोधो-अव्य० [हिं० कोद] ओर, तरफ । ल्याई केलि मंदिर भोराय भोरी भामिनी
उदा० या जिय मैं पिय मूरति है पिय मूरति देव को फूल गंध कैफबस कीन्हों पौन साख त ।
सुमूरति कोधो।
-पजनेस कोपर--संज्ञा, पु० [बु.] थाल । केबर-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] तीर का फल, उदा० कोपर हीरन को प्रति कोमल । ता महँ गाँसी ।
कुकुम चन्दन को जाल । _ -केशव उदा० चमकै बरुनी बरछी ध्रुव खंजर कंबर तीछ! कोपरा-संज्ञा, पु० [हिं० कोंपर] भिक्षा-पात्र, कटाछ महै ।
-दास एक पात्र ।
-देव
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