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ऍचना-क्रि० स० [ हि० खीचना ] खींचना,
तानना ।
उदा० दीन्हीं ऐंचि गाँसी पंचवान बखियान में ।
सोमनाथ ऐनमैन - वि० [फा० ऐन + सं० मैन ] ठीक मोम की भाँति, ठीक मोम जैसा ।
उदा० मैन की बरी सी, ऐन मैन सुपरी सी, अरी बेसुध परी सी, फैन बूंद मुख मरी सी ।
-ग्वाल
ऐनें संज्ञा, पु० [अ० ऐन] नेत्र, आँख । उदा० सरनि तें पैने मीन मृगनि ते ऐनें, हेरे हियौ हरि लेने हैं सुजान सुख देनें हैं। - सोमनाथ ऐरौ पॅरो - क्रि० प्र० [ ? ] डूबना, उतराना । उदा० घिरिंग बैताल ताल खेलत धिगानो मानो, लोहू की भभक भैरौ ऐरौ पैरो ह्र रह्यो ।
-गंग ।
प्रोखे - संज्ञा, पु० [सं०] बहाने, मिस, होला । उदा० प्रानंद ते गुरु की गुरुताऊ गनी गुन गौरि न काहुहु प्रोखे । -देव श्रोत्र – सं०, पु० [सं०] राशि, समूह, ढेर उदा० मेरे मिलाये मिली दिन द्वक, दुरे दुरे आनंद ओघ श्रघाती ।
ऐ
ऐल - संज्ञा, पु० [हिं० श्रहिला ] १. परेशानी, खलबली २. समूह, सेना ३. कोलाहल ४. भीड़ ५. प्रतीक्षा ६. धूल, मिट्टी ७. बाढ़, वूड़ा ८ अधिकता ।
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२. ऐल फैल खैल भैल खलक
उदा० १. खलक में खेल भैल मनमथ मन ऐला । - केशव में गैल गेल । - भूषरण ३. छैल छल छोभक छपाकर चुरल आगे पीछे, गैल गेल ऐल पारत नकीब से । देव ४. कहै पद्माकर गवैयन को ऐल परी गैल गैल फैल फैल फागु परसत है ।
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श्रोध्यो- संज्ञा, पु० [देश०] आरम्भ, शुरू उदा० ऐसी भाँति मादों प्राली, मोर ही तें श्रोध्यो है । — गंग प्रोज - संज्ञा, पु० [सं० प्रोजस्] कांति, चमक,
प्रकाश ।
- पद्माकर
५. गोकुल के छैल ढूंढ़े गूढ़ बन सैल, हों अकेली यहि गैल तो सों ऐल करि-थाकी हीं । -देव ६. सखियान की प्रांखिन पारि के ऐलो । —केशव
ओ
उदा० दोहू सौतें ठाढ़ी जहाँ तहाँ प्राण प्यारो आयो, आपु श्रादरस एक लीन्हे बड़े प्रोज को । —रघुनाथ श्रोझिल -- संज्ञा, पु० [ अवरुधन ] श्राड़, प्रोट । उदा० अम्बर में श्राड़ी व दिगम्बर ह्र रहे, सो बरंबर की प्रोझिल ही, श्रोझिल उझकती । — देव प्रोट— संज्ञा स्त्री० [सं० उट]
शरण, रक्षा,
पनाह । उदा० हाथी सात बेध बचि हो राई ।
सो जाई ।
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कौन प्रोट कर बोधा