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उचटना
उझलना
उचटना-क्रि० प्र० [हिं० उचट] फैलना, छिट-
नाहि कटै दिन कैसे ।
- देव कना २. पृथक होना, निकलना ।
२. कहि तोष छुये कर रंग पटै उछटै उदा० भूषन यो घमसान भो भूतल घेरत लोथिन
पलिका पटिया लपटै ।
-तोष मानो मसानी । ऊँचे सुछज्ज छटा उचटी उछीर-संज्ञा, पु० [ हिं० छीर =किनारा ] प्रगटी परभा परमात ही मानी ।
[प्रा० उच्छिल्ल] १. छिद्र, विवर २. जगह,
-भूषण स्थान, अवकाश ।। २. मनो काम चमू के चढ़े किरचे उचट । उदा० १. ग्वाल कवि सोभा ते सरीर मैं उछीर कलधौत के नालन की।
- गंग
हीन कढ़ी चंद चीर जाइ नहिं भाखे गुन उचाकु--संज्ञा, पु० [सं० उच्चाट] १. उचाट,
-- ग्वाल विरक्ति २. उच्चाटन, तंत्री के छः अभिचारों में
२. चनक मूंद, द्रुम कुंज उछीर । सोर करत। से एक ।
किकन मंजीर ।
- नागरीदास उदा० नींदौ जाइ, भूखो जाइ, जियह में जाइ उजगना-क्रि० प्र० [हिं० उझकना] उचकना,
जाइ, उरह में प्राइ आइ लागत उचाकु चौंकना। सा।
-गंग
उदा० सोवति, जगति, उजगति, अनुरागिनि, उचाना-क्रि० स० [सं० उच्च-करण]उठाना,
बिरागिनिह देव बड़भागिनी लजानी है। ऊपर करना ।
-देव उदा० जानति हौ भुज मूल उचाय दुकूल लचाय उजहना-क्रि० अ० [हिं० उजड़ना?] नष्ट होना, लला ललचंयत ।
-देव समाप्त होना, उजड़ जाना । रवाल कवि करन उचाय उलटाय पीछ, उदा० यौबन के प्रावत उजहि गई एक बार बालक कंध तें मिलाय तन तोरत सरस के ।
बयस की बसी ही जौन बौरई ।- रघुनाथ
-रवाल उझकना-क्रि० प्र० [हिं० उचकना] १. चौंकना, उचलना--क्रि० स० [हिं० उकेलना] उचाड़ना, २. झांक कर देखना, ३. उछलना । निकालना, किसी लिपटी हुई वस्तु की तह को उदा० १. जज्यों उझकि झाँपति बदन कति अलग करना ।
विहँसि सतरात ।
-बिहारी उदा० जीव रह्यौ तुव नेह की प्रास, उसासनि
२. मोहि भरोसो रीझि है उझकि झांकि सों हिय मास उचल्यो ।
-सोमनाथ इकबार ।
-बिहारी ग्वाल कवि बाहन की पेल में, पहेल में, कै
उझपना-क्रि० स० [अनु॰] खुलना, उन्मीलित बातन उचेल में, के इलम सफेल में ।
होना । -ग्वाल
उदा० पद्माकर झपि उझपि उझपि झपि रहत उछंग-संज्ञा, पु० [सं० उत्संग] गोद, अंक, क्रोड़
दूगंचल ।
- पद्माकर २. छाती।
उझरना-क्रि० अ० [सं० उत्सरण. प्रा० उदा० इतै बहु द्यौस में प्राइक धाइ नवेली कों
उच्छरण] ऊपर की ओर सरकना, ऊपर की बैठी लगाइ उछग ।
-दास और उठना। उछकना-क्रि० अ० [हिं० छकना] नशा उत- उदा० करु उठाइ चूंघटु करत उभरत पट रना, होश में आना।
गुझरौट। उदा० छिनकु छाकि उछकै न फिरि, खरौ विषम
सुख मोटै लूटी ललन लखि ललना की छवि छाकु । -बिहारी
लौट । उछटना-क्रि० अ० [सं० उच्चाटन, हिं० उच
-बिहारी टना] १. भड़कना, बिचकना २. उछलना, कूदना उझलना-क्रि० अ० [सं० उल्झरण] उमड़ [हिं० उछलना]।
पड़ना, ढलना, प्रवाहित होना । उदा० १. बीजु छुटे उछटै छबि देव घटै छिनु । उदा० झिल की न जाने हिल मिल की ननाज
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