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श्रक -संज्ञा, पु० [सं० अंक ], अंक, शरीर । उदा० गोरे आँक थोरे लाँक थोरी बैस भोरीमति, घरी घरी और छबि अंग अंग मैं जगे ।
आलम
प्रांकि - संज्ञा, स्त्री० [सं० अंक ] समता, बराबरी । उदा० तेरी सी आँकि तुही नहि आनत काम की कामिनि तो सिरदच्छी । -- गंग
कुर– संज्ञा, पु० [सं० अंकुश ] अंकुश । उदा० सौक सांकरनि नहि गुनत श्रांकुरनि को, मनहु मैनाक जल निधि हिलोरें । श्रीग -- संज्ञा, पु० [सं० श्रंग] छाती, स्तन, उरोज ।
- देव
उदा० कहै पद्माकर क्यों श्राँग न समात श्रांगी - पद्माकर
श्रांगना -- क्रि० स० [हिं० अँगवना, सं० अंग ] सहन करना, बर्दाश्त करना । उदा० कहि कबि गंग ऐसे पिय सों बियोग, मोसी सखी सों उदेग सब एक बेर आँगई ।
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--गंग
श्री - - संज्ञा, स्त्री० [सं० अंगिका ] अँगिया, चोली, कंचुकी । उदा० कहै पद्माकर क्यों ग्राँग न समात प्राँगी ।
--पद्माकर
आँट - संज्ञा, स्त्री० [हिं० श्रंटी] दबाव, दाँव २. बैर, लाग-डाँट । लौं लगि -- बिहारी
उदा० आँटे परि प्रानन हरें कांटे
पाय ।
- संज्ञा, पु० [सं० दू] बाँधने की जंजीर, लोहे की बेड़ी ।
उदा० कुंजर से दृग तेरे भट्ट ! गुन के गुन माल जरेई रहैं ।
(क) खून करें सब 'आलम' को फिर लाज के श्रदू परेई रहें । (ख) अंजन दू सौं भरे, तैन ।
-श्रालम
जद्यपि तुव गज-- रसनिधि
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श्रॉन -संज्ञा, स्त्री० शोभा ।
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[फा० आन] छवि, छटा
उदा० जिरम आंनरस रंग बिन, तजि कुडोल छंद मंग । लीजै कविता रतन में, संग ढंग अरु रंग । --नागरीदास श्रबरी - संज्ञा, पु० [सं० श्रामलक] श्राँवला । उदा० प्राँब छाँडि आँबरी को काहे लागि छीर्यं कोऊ, छीर छांड़ि छाछ पीए खोई खाए खाइगे । गंग श्रवदनी -संज्ञा, स्त्री० [फा० आमद] श्रागमन, अवाई, आना ।
उदा० -- जानि के प्रवदनी बर की चित चाइनि सों तित ही करिकै रुख । ठाढ़ी भई मिलि के तिय गाँउ की नाथ बरात को देखन कों सुख ॥ -सोमनाथ
वदनी सुनि चंदमुखी बनि के निजु कों रति ते जितवैरी । --सोमनाथ श्राँवरे -- संज्ञा, पु० [सं० श्रामलक] आँवला, एक प्रकार का कसैला फल | उदा० कहै पद्माकर अंगूर ऐसे प्राँवरे से फूलत फुलौरी से फुलिंग के तमासा से ।
—पद्माकर
श्राँसलो - वि० [हिं० श्रांस, सं० काश] वेदनायुक्त, वेदना वाला, पीड़ा उत्पन्न करने वाला । उदा० पटक्योई पर यह अंकुर श्राँसलो ऐसी कछू रसरीति घुरी ।
-घनानन्द
श्राँसी - संज्ञा, स्त्री० [सं० अंश ] १. बैना, वह मिष्ठान्न जो इष्ट मित्रों में बाँटा जाता है । २. श्रंश हिस्सा ३. टुकड़ा
उदा० १. काम कलोलनि मैं मतिराम लगे मनौ बाँटन मोद की श्राँसी । - मतिराम २. नारि कुलीन कुलीननि ले रमै मैं उनमें चहों एक न झाँसी ।
-दास
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