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सेली ( २२६ )
सोबर । सूल सेलनि सों क्योंहू न भुलाय है ।
उदा० सैवी जानि मौको लोग कासी को पठाबत
घनानंद हैं प्रावत न मेरे मन कान न धरत हैं। -ग्वाल सेली-संज्ञा, स्त्री० [हिं० सेला] १ छोटा दुपट्टा सैसो-संज्ञा, पु०[सं०शङ्का शङ्का, संदेह, संशय। २. गाँती ३. वह माला जिसे योगी लोग पहनते हैं
उदा० एक दिन ऐसो जामें सिबिका है गज बाजि उदा० १. जोग तुम्हें न इतो कहिकसि सेली ते
एक दिन ऐसो जामें सोइबे को सैसो है। -गंग खोलिके सींगी देखाई।
-रघुनाथ
सोधो-संज्ञा, पु० [सं० सुगन्ध] इत्र आदि, सुगं२.सुमा फटिक माल लाल डोरे सेली पैन्हि मई
धित पदार्थ जिसके लेप से शरीर सुवासित हो हैं अकेली तजि चेली संग सखियाँ। -देव
जाता है। सेवट-संज्ञा, पु० [?] बाल का ढेर, सेउटा ।
उदा०पाई हुती अन्हवावन नायनि सोंधो लिये उदा० लौंग फूल दल सेवर लेखी । एल फूल दल
कर सूधे सुनायनि !
-देव बालक देखो।
-केशव
मिहेंदो रंग पायनि रंग लहै सुठि सोंधो सु सै-संज्ञा, स्त्री० [सं० शय] प्राण, प्रतिज्ञा, शय
अंगिन संग बसै ।
-घनानन्द २. डटना
पावै पास-पास पुहुपन की सुबास, सोई उदा० अब तो रति कीजत से करिक, तब पाँय
सोंधे के सुगंध माँझ सने रहियत है। परेहूँ न मानिय तौ । - गंग
-सेनापति बीती न धरीक या सरीकनि सखी के कहे,
सोकना-क्रि० अ० [हिं० सूखना] सूखना, शुष्क सैकरि हौं रही सोक संक मैं सकरि कै-देव
पड़ना । सैकरि अधिक मदि के आँखझुकी-सीकरी
उदा० जान कह.यौ पिय पान पुरी कों डरी तिय पलके चयलायकै
-कृष्ण कवि ।
प्रान अचानक सोका । सैक-वि० [स०शत +एक ] शतक, एक सौ
- भूषण उदा०तेरे ही परोस कोस सैक के सरोस ह ह'
सोधि - क्रि० वि० [सं० शोध ] अच्छी तरह, __ कैसी कैसी सेना कीनी कतलू पठान की-गंग
भली भांति ।
उदा. सिंधु बांधत सोधि के नल छीर छींट सैंतुक-क्रि० वि० [सं० सम्मुख प्राख के सामने,
बहाइयो।
-केशव पागे, प्रत्यक्ष । उदा० सांचहू स्याम मिले तुमैं सैंतुक सैंतुक नाहि
सोन-संज्ञा, पु० [सं शोण] १. रक्त, लाल २. परी सपने में
- पद्माकर
स्वर्ण, ३. धतूरा ।। सँधौ-संज्ञा, पु० [सं० सैंधव] सिन्धु देश का
उदा० १. देव मनोज मनो जु चलायो चितौनि मैं __सोन सरोज को चावक ।
-देव घोड़ा मुहा० सैंधव पलानना-घोडे आदि पर
३. मंग गंग सोन हित भसम भुजंग सोन पलान कसना, भागना, प्रस्थान करना, जाना ।
अंग लागे अंगराग अंगना के अंग के । उदा० मानिये बेनी प्रवीन कही मौन मानिये तौ
-देव क्यौं पलानत संधी। . -बेनी प्रवीन
सोनचिरी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० सोना+चिड़िया] सैन-संज्ञा, पु०[सं० संज्ञापन] पलक २. इशारा, नटनी, तमाशा दिखाने वाली। संकेत, चिन्ह ३.शयन
उदा० आजु सखी लखो सोन चिरी, वृषभान के उदा० १.बिलखी लखै खरी खरा भरीअनख बैराग
द्वार जुरे जुर गेदन ।
-बेनी प्रवीन मृगनैनी संन न भज, लखि बेनी के दाग - बिहारी सोनी-संज्ञा, पु० [सं० स्वर्णकार] स्वर्णकार, सैफ-संज्ञा, स्त्री० [प्र० सैफ] तलवार, खड्ग
सोनार । उदा० सैफन सों तोपन सों तबलरू ऊनन सों, उदा० छिति कैसी, छोनी रूप-रासि की पकोनी दक्खिनी दुरानिन के माचे झकझोर हैं। -कवीन्द्र
गढ़ि, गढ़ी बिधि सोनी गोरी कुंदन-से गात सैलुस - वि० [फा० सालस] छलिया, नक्काल ।
की।
-देव उदा० नहिं दाडिम सैलूस यह, सुक न भूलि | सोबर-संज्ञा, पु० [सं० सुवर्ण] सुवर्ण, स्वर्ण, श्रम लागि । -दीनदयाल गिरि
सोना । सैवी-संज्ञा, प्र० [सं शैव] शिवोपासक, शंकर उदा० रावर की छबि बरनौं कैसें । सोबर को का भक्त ।
घर सोहत जैसें.
-घनानन्द
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