________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुरतर गिनी ( २२४ )
सुहेल उदा० उरग्यौ सुरग्यौ त्रिबली की गली गहि | उदा- विहँसी सब गोपसुता हरि लोचन मंदी नाभि की सुन्दरता संधिगौ।
-ठाकुर सुरोचि दुगंचल की।
-केशव सुरतर गिनी--संज्ञा, स्त्री० [सं० सुरतरंगिणी] सुलफ वि० [सं० सु+हिं० लफना] लचकीला, १. सरजू नदी २. पाकाश गंगा ।
__ लचनेवाला २. कोमल, मुलायम, सुंदर। उदा० बह शुभ मनसाकर, करुणामय अरु सर- उदा० १.अंग सुगंध लगाय प्रीति सों जुलफै तरंगिनी शोभसनी।
-केशव सुलफ सँवारे।
बक्सी हंसराज सुरवारनि--संज्ञा, स्त्री० [सं० सूर + दारा] .
२.कंचुकि कसी ललित घनबेली मंडित देवाङ्गनाएँ .. सुन्दर स्वर वाले [सं० स्वर +
सुलफ किनारी। -- बकसी हंसराज फा० दार (प्रत्य॰)]
सुलाखन-वि० [सं० सुलक्षण ] १. सुलक्षण, उदा० त्योंही सुरदारनि मैं त्योंही सरदारनि में, सुन्दर लक्षणों वाला २. सुराख, छिद्र ३, लक्ष, उदित उदार सुरदार विकसत हैं।
लाख ।
--देव उदा० . देव सुसील सुलाखन के, सुलाखन सुरने-संज्ञा, स्त्री० [सं० सुर=देव + प्रा० नइ
ही लहिये घर बैठे।
-देव -नदो] देवनदी, गंगा।
सुवा - संज्ञा, स्त्री० [सं० सु+वास ] सुवास, उदा०पर कंचन के गिरि ते सरनै जुग धार सुगंध २. शुक, तोता। धसी झुकि भूमत है।
-तोष उदा० १. दीप की यों तन दीपति की पर धूम सुरसिधु-संज्ञा, पु० सिं०] १. क्षीर सागर २
सुवा दुहहजन लागी।
-तोष देव नदी (स्त्री० लि०)
सुसुमित-वि. [सं० सस्मिति] मुसकराहट युक्त, उदा० १. कहै पदमाकर बिराजै सरसिधु धार हँसीयुक्त। कैधौं दूध धार कामधेनुन के थन की। । उदा० देव दुरीगाइ पाकुलाइ सुसुमित मुखी,
-पद्माकर
कुसुमित बकुल कदंब कुल कुंज में । २. देखै सुरसिधु रन चढ़े सुरसिंधु रन,
-देव कूल पानिह पियें त्रिसुल पानि हजिय।। सुसो-संज्ञा, पु० [सं० शश] खरगोश, खरहा ।
-सेनापति । उदा० सुसो एक उठि भागौ तब। ता परि कूता सुरूख-वि. [सं० सु+फा० रुख] १. उत्तम,
छोड़े सबै ।
-जसबंतसिंह २. सदय, मनुकूल'. धुंघची ४. लाल ।
सुहाग-संज्ञा, पु० [सं० सौभाग्य] सिंदूर, बंदन । उदा० अमल अमोलिक लालमय पहिरि विभूषन उदा० पबही तें उबटि पन्हाई बैठी पाटी पारि भार । हरखि हिये पर तिय पर यो सुरुख
प्रांखें आजि एड़ी माजि पूरि के सुहागु सीप को हार। - पद्माकर
-सुन्दर सरी- संज्ञा, स्त्री० [सं० सुर] देवत्व, देवत्ब की सुहागी-संज्ञा, स्त्री० [?] एक प्रकार का
प्राप्ति २. देवता जैसा प्रधिकार ३. देवाङ्गना । पुष्प । उदा० १. सोचहू में सुख में सुरी में साहिबी में उदा० प्यारी न न्यारी एक छिन देखौ थाको कहूँ। गंगा गंगा गंगा कहि जनम बिता
भाग । सदा सुहागी मोहनी तात सदा इये।
-पद्माकर सुहाग ।
-मतिराम सुरुखाई-संज्ञा, स्त्री० [सं० रुचता] १. रूखा- सुहारे-संज्ञा, पु. [हिं० सुहाल] मैदा से निर्मित पन २. सुर्खता, लालिमा।
पापड़, एक प्रकार का नमकीन खाद्य पदार्थ । उदा. मूख की रुखाई सनमूख सरुखाई परुखाई उदा. फेनी गूझा गजक मुरमुरे सेव सहारे । यों न पाई सुरुखाई सुरुखाई सी।
जोर जलेबी पुंज कंद सो पगे अहारे । - देव
-सोमनाथ सुरोखे-वि० [सं० सु+ रुष्ट] रुष्ट, नाराज. सुह-वि० [सं० शुद्ध] शुद्ध, ठीक, उचित । उदा० पाली के धोखे ही पानी पनौखे, सुरोखे उदा०-धनमानँद जान सजीवन सों, कहिये तो परी, पलका न परौंगी।
-देव समै लहिये न सूहूँ।
-घनानन्द सुरोचि-संज्ञा, स्त्री० [सं० सुरुचि] सुन्दरता, | सुहेल-वि० [सं० शुभ ] १. सुखदायक २. छबि ।
सुहावना ३. मंगलगीत ३. अगस्त तारा [अ०]
For Private and Personal Use Only