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-केशव
रमल ( १९५ )
रसभरा रमल-संज्ञा, पु० [अ०1 एक प्रकार का फलित । कनक-कली पैमली जात न लजात हो । ज्योतिष, जिससे पासे फेंककर भविष्य की बाते
-प्रतापसिह जानी जाती हैं।
रवन-संज्ञा, पु० [सं० रव+हिं० न] शब्द, उदा० राति को तमासो सुनौ सोई गुरुजन जब मावाज । कीन्हो अभिसार तब साधिक रमल सो।। उदा० झांद झाँइ झिकरत झिल्ली धारि जील
-रघुनाथ
अरु, को गर्ने प्रनंत बन जीव के रवन की। रयना-क्रि० प्र० [हि० रटना] १. रटना,
-सोमनाथ उच्चारित करना २. अनुरक्त होना सिं० रंजन] रवनगेह-संज्ञा, पु० [सं० रमण + गृह] मदउदा० १. प्राकास बिमान अमान छए । हा हा । नालय, स्त्रियों की गुप्तेन्द्रिय, योनि ।' सबही यह शब्द रए।
-केशव
उदा० नाभि तो गंमीर, न गंभीर हो रवन गेह. २. सेमर फूल तूल के रये । परद गात मख
कहै गंग कामिनी कहूँक ऐसी पाइये। मल मढ़ि लये ।
-गंग ररकना -क्रि० प्र० [अनु॰] कसकना, पीड़ा देना, रवला-संज्ञा, पु० [हिं० रोल] ध्वनि, शब्द । सालना।
उदा० बेनी प्रवीन कहैं ज्यों चलै कटि, किंकिनी उदा० सपनो कि सौति कहौ सोवति की जागत स्योंही रचे रवला वह । -बेनीप्रवीन री, जानो न परत, रोम रोम ररकत री । रवानी - वि० [सं० रमण] १. सुन्दर २. मानन्द
-देव माव में मग्न होना, रमना । थारौं कोटि काम राम केसौ पभिराम पर, । उदा० जित तित छकिहारी जुरि चली, लगति पैठ राजधाम राजरंजित रराकि दे।-देव
खाँनी ब्रज की गली।
-घनानन्द ररमा-क्रि० प्र० [सं० रटन] रटना, चिल्लाना।
२. गोकूल प्रकास्यो ब्रजचंद के उदोत उदा० मनसा हू ररै एक देखिबे को रहै द्वै।
पाली, माज देखौं मांति भौति रावल -घनानन्द रवानी है।
-घनानन्द रलक-संज्ञा, पु० [सं० रल्लक] बरौनी।
रवा-संशा, पु० [फा०] १. सम्बन्धी, सम्बन्ध, उदा० रलि गईरलक झलक जलकननि की, रखने वाले २. रत्न का छोटा टुकड़ा, करण । अलक पराल छुटी नागिन निखेवी की। उदा० १. रन रोस के रवा हैं के लवा हैं श्री
-देव सवाई के।
-पद्माकर रलकना-क्रि० प्र० [हिं० रकना] खसकना, २. क्यों छुवै अंग पै देखत हैं जू जराऊ हटना ।
तरौना मैं रूप रवा को ।
-देव उदा० ज्यौं लरिकापन मैं चलि पाई हो त्यौं रवाई-संज्ञा, स्त्री० [सं० रमण] रमणीयता,
अंचरा प्रजहूँ मतिडारो। घूघरी की धरि सुन्दरता। डोरी कसौ रलके लॅहगाउ को बूंट सुधारो। उदा० रूप की रवाई जातरूप की निकाई मैन
---सुन्दर
पाई रुचिराई कोटि वार बदले गये। रलना-क्रि० अ० [सं० ललन] मिलना, एक में
-नंदराम मिलना, सम्मिलित होना २. प्रवाहित होना, रसधि-संज्ञा, स्त्री० [फा० रसद] सेना की खाद्य बहना।
सामग्री। उदा० सागर सरित सर जह'लों जलासै जग. | उदा० मागे दीनी रसधि चलाइ । पीछे मापन सब में जो कहे किल कज्जल रलावही।। - चले बजाइ।
--केशव -दास
रसफैली-संज्ञा, स्त्री० [सं० रस+फा० फेल] २. भूषन मनत नाद बिहद नगारन के, काम क्रीड़ा, काम कलोल, रसरंग ।। नदी नद मद गैबरन के रलत है। उदा० सोवति अकेली है नवेली केलि मंदिर
-भूषण
जगाइ के सहेली रसफैली लखे टरिक। रली-संज्ञा, स्त्री० [सं० लालन-क्रीड़ा] क्रीड़ा
-दास केलि, २.मानन्द, प्रसन्नता ।
रसभरा-संज्ञा, पु० [देश॰] ईख के खेत में उदा० रचत रली हौ भली भांतिन विचारि चित
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