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परिंगहु
परकीति
( १४७ ) हिलना, गीधना, चसका लगना ।।
उदा० ले परबी परवी न गनै कर बीन लिये उदा० 'द्विजदेव' जु सारद चंद्रिका जानि, चकोर
परबीन बजावै ।
-देव चहँ परकेई रहैं।
-द्विजदेव | परमोधना-क्रि०अ० [स० प्रमोद] प्रसन्न करना, परकीति-संज्ञा, स्त्री० [सं० प्रकृति] प्रकृति, फुसलाना, वश में कर लेना। _ स्वभाव, आदत।
उदा० चहूँ और कौंधा चकचौधा लागै सूनी उदा० प्रतिमतवारे जहाँ दुरदै निहारियत तुरगन
सेज स्याम सुखदाई दारी दासी परमोध्यो ही में चंचलाई परकीति है। -भूषण
-गंग परचाना-क्रि० स० [सं० प्रज्वलन] १. जलाना परमोधु-संज्ञा, पु० [सं० प्रमुग्ध] बेहोश, २. क्रि० अ० [परचना] जलना ।
मूच्छित । उदा. आधे अन सुलगि, सुलगि रहे प्राधे, मानौं उदा० शत्रु चमू वर्णन समर लक्ष्मण को परमोधु बिरही दहन काम क्वैला परचाए हैं।
-केशव -सेनापति परविष-संज्ञा, पु० [सं० पर= श्रेष्ठ+विष] २. किसुक अँगार मुख माँहि परचत है। तीव्र विष, उत्कट विष ।
-ग्वाल उदा. हाड़ से हाटक परविष से विषयरस परझाना-क्रि० स० प्रा० परज्झ] परचाना
केसौदास ऐसैं सब संतोष बखानिय परतंत्र करना, पराधीन करना, वशीभूत
-केशव करना ।
परा--संज्ञा, पु० [हिं० परिया, सं० पारि] १. उदा० द्वार उठि जात घुमि देहरी पै बैठि-जात प्याला, परई, दोये के आकार का मिट्टी का नैन अकुलात परझाये परझत नहीं।
वर्तन २. पंक्ति, कतार ।।
-नन्दराम | उदा० १. हौं तो सदा गरपरा तेरो परा भरो परतीत-संज्ञा, स्त्री० [बु०] १. कठिन प्रभाव
दधि पाऊँ।
-बक्सी हंसराज २. प्रतीति [सं० विश्वास ।
२. जोबन की जोति जाकी जीति की उदा० जानती जो इतनी परतीत तौ प्रीति की
जगति कला, और कहा आइ परा बाँधि रीति को नाम न लेती ।
-ठाकूर कौन लरैगो।
--गंग परदे- संज्ञा, पु० [फा० परिन्दः] पक्षी २. पर पराइछे--अन्य [सं० पराची] दूसरो और। या पंख देना।
उदा. पाये सेख मीच के लिए। पुर पराइछे उदा० ईस हमैं परदे परदे सों मिलौं उड़ि ता
डेरा किये।
-केशव हरि सों परदेसों।।
--दास
परारष-संज्ञा, पु० [सं० पराद्धं] १. एक शंख परन-संज्ञा, पु० [सं० प्रण] टेव, पादत ।
की संख्या २. ब्रह्मा की प्राय का पाषा काल । उदा० कहै कबि गंग बन बीथिन परन परे, सुने । उदा० एक तें अनेक के, परारध लीं पूरो करि, के के छाँड़े दूने जंगली-जनावरनि ।
लेखो करि देखो, एक सांचो और सून है।
गंग परनि-संज्ञा, स्त्री० [?] बोल, अावाज ।
परावन-संज्ञा, पु० [सं० पर्वन्] पर्व, उत्सव । उदा० १. मन की हरनि तैसी बरनी न पावै
उदा० रति मन में उठावै जैसी परनि मृदंग की।
भजे अँध्यारी रैनि मैं, भयोमनोरथ काज ।
-तोष . पूरे पूरब पुन्य ते; पर्यो परावन आज ।। सुखिर घन पाछी पाछी ठान सों बाँकी
-मतिराम परन उठान सों।
-घनानन्द परि-अव्य [सं० परं] निश्चय, पै। परबन-संज्ञा, पु० [सं० पर्व] १. कथानक । उदा० साँझ ही तौ सखिन समेटि करि बैठी कहा. २. ईख में दो गाँठों के बीच का स्थान ।
भेट करि पी सों परि पैठ सी भैजाइ लै । उदा० तजत न गाठि जे अनेक परबन भरे, आगे
-पदमाकर पीछे और और रस सरसात हैं। --सेनापति
ठाढ़ी गई ह तहाँ कर ठोढ़ी दै, पोढ़ि गई परबी-संज्ञा, पु० [सं० पर्व] १. वीणा के पर्दे
परि लाल गढ़ी सी।
-बेनी प्रवीन २. पर्व-त्योहार।
परिगह-वि० [सं० परिग्रह] कुटुम्बी, परिवार
-देव
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