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दबरना
( १२२ ) बाज्यो, गाज्यो कवि ग्वाल देखि दामिनि । दरपेस-क्रि० वि० [फा० दरपेश] आगे, दफेर सी।
-ग्वाल कवि | सामने । दबरना-क्रि० अ० [हिंदी दौड़ना] १. दौड़ना। उदा. फरस दुरुस्त दरपेस खसखानन में झालरन २. धमकाना [बुं 11
मुकुता मुकेस झरिबो करे। उदा० १. पौढ़े जगनायक अँगठनि को चूसत
-पजनेस दसूठनि की जुठनि कौ देव दबरे फिरें. दरब-संज्ञा, पु० [सं० द्रव्य ] धन, द्रव्य,
-देव संपति। २. काहे को तुम हम को लालन दबरत उदा० दरबर दौरि-करि-नगर उजारि डारे कटक ठभरत ठाढ़े।
-बकसीहंसराज ___ कटायो कोटि दुजन दरब की। -भूषण दम--संज्ञा, पु० [?] १. एक प्रकार का हथियार वरबर-क्रि० वि० [?] शीघ्र, जल्दी, २. सेना २. तलवार या छुरी प्रादि की धार ।।
का बल [संज्ञा, सं० दल+बल] उदा०-गुरदा बगुरदा छुरी जमधर दम तमंचे। उदा० दरबर दासनि को दोष दुख दूरि करै भाल कटि कसे ।
-पद्माकर
पर रेखा बाल दोषाकर रेखिये। -दास दमल-संज्ञा,पु० [फा० दमामा] नगाड़ा, डंका ।
अहोहरि आये महा दरबर मैं, कहा बनि उदा० रघुनाथ मन में मनोरथ की सिद्धि तानि
प्रावै टहल दरबर में ।
- घनानन्द नूपुर बजन लागे पाइ में दमल सो।
२. दरबर दौरि करि नगर उजारि डारे -रघुनाथ
कटक कटायो कोटि दुजन दरब की। दमानक-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] १. तीरों की
-मषन बौछार, तीर चलाना २. तोपों की बाढ़ । दरराने- क्रि० वि० [हिं० दरारा] तेजी से, उदा० जाति मई फिरि कै चितई तब भाव रहीम धक्का देते हुए, बिना किसी रोक के ।
'यहै डर आनो । ज्यों कमनैत दमानक में उदा० भाई न गेह में प्रावन पावत, आवत सारे फिरि तीर सों मारि लै जात निसानो।।
घरै दरराने । -- रहीम
-सूरति मिश्र वमामा-संज्ञा, पु० [फा०] छोटा नगाड़ा ।
वरव-संज्ञा, पु० [सं० दर्प] दर्प, अभिमान । उदा० दादुर दमामें झांझ झिल्ली गरजनि घौंसा. उदा० बारिध बिरह बड़ी बेदन की बाडवागि, दामिनि मसालै देखि दुरै जग जीव से ।
बूड़े बड़े-बड़े, पार परे प्रेम पुलते । गहनों -देव
दरव देव-जोवन गरब गिरि पर्यो गुन टूटि, दमारि-संज्ञा, स्त्री० [सं० दावानल, हिं०
बुद्धि ना डुले अडुलते ।
-देव दवारि] दावाग्नि, दावानल ।
दर- संज्ञा, स्त्री॰ [देश॰] १. प्रतिष्ठा, कदर । उदा० अरि-तोम-तम-तिमरारि है । अरि-नगर- २. डर, भय ३. ईख [सं० दारु] ४. द्वार, दग्ध-दमारि है।
-पद्माकर दरवाजा (फा०) ५. दल [सं०] । दरगाह-संज्ञा, पु० [फा०] १. दरबार, कच- उदा० १. घर-घर द्वार-द्वार गली-गली फिरहरी २. मकबरा ।
वैया, भोर तें धंसत साँझ, जिनकी कहा उदा० १. जाय दिली दरगाह सुसाहिको, भूषन
दर है।
-ग्वाल बैरि-बनाय ही लीनो।
-भषण
बरस-संज्ञा, पु० [सं० दर्श०] १. अमावस्या. दरवामन-संज्ञा, पु० [?] एक प्रकार का अमावस्या का अन्धकार 1२. सुन्दरता, छवि । गोटा।
३. दीदार, दर्शन । उदा० बादले की सारी दरदामन किनारी. जग- उदा० १. दरस को अन्त्य ज्यों उजेरौ ना अँधेरो मगी-जरतारी, झीनी झालरि के साज पर ।
पाख ।
-सोमनाथ
२. प्राज घाम-घाम पूरइन है कहायो नाम वरपक-संज्ञा, पु० [सं० दर्पक] कामदेव ।
जाके बिहँसत मैलौ चन्द को दरस है । उदा० तोहि पाइ कान्ह, प्यारी होइगी-विराज
-सेनापति मान, ऐसे जैसे लीने संग दरपक रत्ति है। दराज-वि० [फा०] बड़ा, विशाल, २. दरार,
-सेनापति । दरज, ३. ऊँचा ।
-देव
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