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तगोर
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तगीर — संज्ञा, पु० [अ० तगय्युर] परिवर्तन | उदा० सिसुता अमल तगीर सुनि भए और मिलि मैन । बिहारी तगीरी -संज्ञा, स्त्री० [हिं० तगीर ] अवनति, पदावनति । उदा० मनसब घटे तगीरी होई ।
-लाल कवि तथलं - संज्ञा, पु० [हिं० तचना ] श्राग, तपन, गर्मी २. जलना, [ क्रि० प्र०] । उदा० येरी गरवोली भूलि जैहै जो विरह, विष खै को बचैहै मैन महीपति तचलै । बेनी प्रवीन तड़ - संज्ञा, स्त्री० [सं० नड़ित् ] तड़िता, बिजली, दामिनी ।
- श्रालम
उदा० सुरचाप गड़ी तड़ तेग तये कवि आलम उत्तर दच्छिन री । ततच्छ-क्रि० वि० [सं० तत्क्षण] शीघ्र, तुरन्त । उदा० नैन ते निकरि मन मन ते तमाम तन तन ते ततच्छ रोम रोम छवि छै गई ।
-पजनेस ततबितत -संज्ञा, पु० [?] नृत्य के भेद । उदा० सहचरि चुहल चोप हो चहुँ ओर आनँद घन तत बितत । तती — संज्ञा, स्त्री० [सं० तांता २. समूह | उदा० इंदु उर अंबर ह्र
-घनानन्द
तति ] श्रेणी, पंक्ति,
निकसी तिमिर तती, सुधाधर केलि करें बेलि ज्यों सिवालिनी, - देव सूक्ष्म उदर में उदार निरं नाभी कूप, निकसति ताते तती पातक अतंक की । — देव महा उच्च माथै सिरी सोहती हैं । मनों सिद्ध को सुद्ध सोभा तती है ।
—पद्माकर
तत्ती - वि० [सं० तप्त ] दाहक, तप्त । उदा० कर करी सुकत्ती तीखन तत्ती हनि रिपु छत्ती नहि बिनसी । तताई - संज्ञा, स्त्री० [हिं० तात] ताप, ज्वाला, गर्मी ।
-पद्माकर
उदा० धोखो बढ़यौ जिय जानि कुमार हें परसे यह श्रंभ तताई ।
कुमारमरिण बरनि बताई, छिति व्योम की तताई, जेठ आयो प्रातताई पुट पाक सौ करत है ।
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संक
— सेनापति सनगना- क्रि० प्र० [हिं० तिनगना ] नाराज होना, क्रुद्ध होना, झल्लाना, चिढ़ना । उदा० होनजल मोन सो नवोन तिय अंकहूँ मैं, डीठि करि पैनी ह्र तनैनो तनगति है । -सोमनाथ तानना ] विस्तार,
तननि – संज्ञा, स्त्री० [हिं० खिंचाव ।
उदा० किंकिनो रटनि ताल नाचत गुविंद फन फननि
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तनाखना- क्रि स० [हिं० तनाना] तनाना,
टाँगना ।
उदा ग्वाल कवि उरज उतंग तंग तोफन पै, कर्मनें कछूक केस कुंडल तनाखे है ।
ग्वाल
ताननि तननि देव, फर्निंदु के ।
- देव
तनाय -- संज्ञा, पु० [फा० तनाब ] रस्सो, डोरी । उदा० जहँ तहाँ ऊरध उठे होरा किरन घन समुदाय हैं। मानो गगन तंबू तन्यो ताके सपेत तनाय हैं । - भूषरण तनी - संज्ञा स्त्री० [हिं० तनाव ] बंद, चोली को डोर, बंधन २. चोलो, तनिया । उदा० बसन लपेटि तन गाढ़ो के तनीनि तनि सोन चिरिया सो बनि सोई पियसंग में ।
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तपन – संज्ञा, पु० [ सं उदा० सहिहों तपन ताप को बिरह बीर
—दास
तपकना --क्रि स० [सं० ताप] जलना, संतप्त होना । उदा. टपकत असू तपकत हियरा है सियरा, है प्रति कहति बिसारी दसा तन दी । - बेनी प्रवीन
सूर्य, रवि । पर को प्रताप, रघुवीर मोपै न सहयौ परी । - केशव तपनीय संज्ञा, पु० [सं०] स्वर्ण, सोना । उदा० कोटिक लपटें उठी अंबर दपेटे लेति, तथ्यौ तपनीय पयपूर ज्यौं बहुत है । -सेनापति तपु संज्ञा, पु० [सं० तपुस्] अग्नि, आग | उदा० तपन तेज, तपु-ताप तपि, अतुल तुलाई माँह । - बिहारी तबक -- संज्ञा, पु० [फा०] चाँदी अथवा सोने का बर्क ।
उदा० किधी कमनीय गोल कामिनी कपोल तल
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