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जुरी
जेहरि मटकि ऐंडात जुरी ज्यों अँभात तैसे हो ।
__ मनि कुडल जेटी।
-देव -केशव
जेठाई -संज्ञा, स्त्री० [हिं० जेठ] बड़ाई, जेठापन, जुर्रा-संज्ञा, पु० [फा०] नरबाज, एक पक्षी जो
गुरुता, मर्यादा । चिड़ियों पर आक्रमण करता है।
उदा० तोरी न जाइ जेठाइ सखीन को, देव ढिठाई उदा० जुल्फ बावरिन को लखि जुर्रा। -बोधा
कर नहिं थोरी।
-देव जुलकर्न-संज्ञा, पु, [?] सिकन्दर नाम का जेब -संज्ञा, स्त्री० [फा० जेब] सुन्दरता, प्रसिद्ध युनानी बादशाह ।
सौन्दर्य । उदा० जो न लई जुलकर्न जुधिष्ठिर, जो रबि के उदा० जोबन जेब जकी सो कलारि छकी मद सौं रथ चक्र न थापो। बामन के पग तें जू
झुकि भूमति डोल ।
-देव बची महि, सो महि मान महीपति मापी। जेर-वि० [फा॰] परास्त, पराजित ।
-गंग | उदा० टेर की जो ताकी बिपता को गहि जेर की जलहाल-संज्ञा, पु० [सं० छल । फा० हाल]
है, बेर सी लुटावै वीर सम्पति कुबेर की । धोखे की दशा, धोखाधड़ी, प्रवंचना ।
-बलदेव उदा० जाल की अोढ़नी लाल, बटोही बिहाल करै, जेरी–वि० [फा० जेर] १. परास्त परेशान २. जुलहाल जुलाहिनि ।
-देव
जकड़ा हुआ, बँधा हुआ ३. जेवर, रस्सी [संज्ञा, जन-वि० [सं० जीर्ण] पुराना, जीर्ण ।
स्त्री०, हिं० जेवर] । उदा० तरुबर जून ज्वान अरु नये । मखमल जर- उदा० २. चित्र में चितेरी है कि सुन्दर उकेरी है बाफनि मढ़ि लए।
-केशव
कि जंजिरन जेरी है ज्यौ घरी लौं भरतु जप-संज्ञा, पु० [सं० द्यूत] जुमा, द्यूत ।
-सुन्दर उदा० सुन्दरताई कौं जीतत जप मैं, हारत हैं मन
३. कैसे करिय भरिय को लौं कुल को कानि से धन भारे।
-नागरीदास जैजर जेरी सों।
-घनानन्द जूमना-क्रि० प्र० [अ० जमा] जमा होना, इकठ्ठा जेल-संज्ञा, पु० [फा० जेर] जंजाल, परेशानी होना, एकत्रित होना ।
का काम, बंधन । उदा० काहु पाय आहट न पायो कहा कहौ भटू उदा० जिय गल डारि जेलनि । अजहँ समुझि रघुनाथ की दोहाई चेटकसो जूमिगो ।
तजि मूरख पेलनि । - रघुनाथ
रूप साँवरो साँचु है सुधा सिंधु में खेल लखि जूरी-संज्ञा, पु० [?] समूह ।
न सके अंखियाँ सखी परी लाज की जेल । उदा० धन अरु बिद्या सब सुख पूरी । सेबै सदा
-मतिराम भक्त को जूरी ।
-जसवंत सिंह जेलि-संशा, स्त्री० [फा० जेर] जंजाल, बन्धन, जेउर--संज्ञा, पु० [फा० जेवर] आभूषण, हैरानी, परेशानी । गहना ।
उदा० लोक प्रौ वेद दूहुनि की जेलि सो पेलि के उदा० काछ नयौ इकती बर जेउर दीठि जसोमति
प्रेमहि में मिलिजैहै ।
-तोष रांज करयो री ।।
- रसखानि जेवन - संज्ञा, पु० [फा० जेब- सौन्दर्य] सौन्दर्य जेट-संज्ञा, पु० [देश॰] दोनों भुजाओं में भरने राशि, शोभाराशि । की क्रिया । मुहा० जेटभरन किसी व्यक्ति या वस्तु उदा० सेवन उचित नर देवन अनोखी यह जेवन को दोनों भ्रजात्रों के बीच में समा या भर लेना,
की मूल प्यारी मेवन की बेल है अँकवार लेना, भेंटना ।
-ग्वाल उदा० भूलत नहि भटू कैसेहूँ भरनि सुपलकनि | जेहरि संज्ञा, स्त्री० [देश॰] पायजेब पैर में जेट की ।
-घनानन्द पहनने का एक भूषण । यारी मोरी चोट भरें। बिनु संके मेंटे, उदा० जेहरि को खटको जबही भयो सुन्दर देहरी भरि मरि जेटैं।
-सोमनाथ प्रानि अटा की, ।
--सुन्दर जेटी--वि० [सं० जटिल] जटित, जड़ा हश्रा ।
जेहरि मेरी धरै नित जेहरि, तेहरि चेरी के उदा० नापिका में झमकै मुकुता, श्रुतिह झुमकी
रंग रचे री।
- देव
-दास
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